इस कंक्रीट की एक खासियत है कि इससे बनी दीवार से छनकर केवल रोशनी घर के अंदर जाएगी, गर्मी नहीं। दीवार भी अंदर से नहीं तपेगी। हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) के सिविल इंजीनियरिंग विभाग से एमटेक अंतिम वर्ष के छात्र रामांश वाजपेयी ने लोहे व स्टील के कचरे और प्लास्टिक फाइबर को मिलाकर ऐसी ट्रांसपैरेंट कंक्रीट बनाई है, जो सूर्य की किरणों को पार जाने देगी।
यह पारदर्शी ईंट कार्बन डाई ऑक्साइड मुक्त होने के साथ साधारण ईंट के मुकाबले 15 फीसद हल्की, 23 फीसद अधिक मजबूत होगी। जबकि लागत मौजूदा दीवार के मुकाबले महज 33 फीसद होगी। इसमें उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक ऑप्टिकल फाइबर सस्ते व टिकाऊ होने के साथ ही सूरज की रोशनी को आर-पार करने की क्षमता रखते हैं। इस कंक्रीट में ग्राउंड ग्रेनुलेटेड ब्लास्ट फर्नेस स्लेग (जीजीबीएस) व प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) होने के कारण यह साधारण ईंट की अपेक्षा 15 फीसद हल्की है।
ईंट को तैयार करने वाले छात्र रामांश ने बताया कि इसके जरिए सूरज की 30 फीसद रोशनी घर के अंदर पहुंचेगी। यह साधारण ईंट से 23 फीसद अधिक मजबूत है। उन्होंने ट्रांसपैरेंट ईंट बनाने के लिए 40 फीसद जीजीबीएस का उपयोग कर पाया कि इसका इस्तेमाल करने से साधारण ईंटके मुकाबले महज 33 फीसद लागत रह जाती है। जीजीबीएस से बनी (3 गुणा 3 गुणा 0.1125 घन मीटर) ट्रांसपैरेंट ईंट की लागत करीब 1924 रुपये आई वहीं ईंट व प्लास्टर की इसी आयतन की दीवार की लागत 5800 रुपये आती है।