यह वाक्या बिठूर के नारामऊ गांव का है। यहां नेत्रहीन सोबरन रावत की बेटी पूजा की गुुरुवार को बारात आनी है, पर बुधवार शाम तक सोबरन की जेब खाली थी। गांव वालों ने देखा कि शादी के एक दिन पहले घर में सन्नाटा है तो वे हाल लेने पहुंच गए। तब जाकर असलियत पता चली। फिर क्या था, गंाव के हिंदू-मुस्लिमों ने आपस में हाथ मिलाया और गरीब पूजा को धूमधाम से विदा करने की ठान ली।
सभी ग्रामीणों ने अपनी हैसियत के मुताबिक सहयोग किया और पूजा का घर शादी के सामान से भरने लगा। किसी ने फ्रिज दिया तो किसी ने बेड। कोई दावत के लिए सामान लाया तो किसी ने नकद देकर मदद की। गांव के सारे हाथ सहयोग के लिए आगे बढ़े तो सोबरन की भीगी आंखों में बेटी की शादी की खुशी चमकने लगी।
अब शादी की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। इंतजार है तो फिर बारात के आने का। गांव की मुस्लिम महिलाएं मंगलगीत की तैयारी में जुटी हैं तो गांव के बुजुर्ग बारात की अगवानी की व्यवस्था देख रहे हैं। एक गरीब परिवार की बेटी को विदा करने से पहले गांव में साम्प्रदायिक एकता का जो माहौल बना उसकी जानकारी पाकर खुद बिठूर एसओ विनोद कुमार सिंह भी खुद को नहीं रोक सके और ग्रामीणों को बधाई देने गांव जा पहुंचे।