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कानपुर

उज्जैन के बाद बिठूर में भी है महाकालेश्वर, मुगलशासक के मंत्री ने करवाया था निर्माण

ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना यहीं पर की थी तो मां सीता लव-कुश के साथ कई वर्षों तक यहीं पर रूकी थीं।

कानपुरNov 25, 2017 / 08:32 am

आकांक्षा सिंह

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कानपुर. शहर में पंद्रह किमी की दूरी पर स्थित बिठूर धार्मिक और आजादी की नगरी के रूप में जानी जाती है। ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना यहीं पर की थी तो मां सीता लव-कुश के साथ कई वर्षों तक यहीं पर रूकी थीं। नानाराव पेशवा ने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में आजादी का बिगुल फूंका तो मुगलशासकों को यह नगर भाया था। लोगों के कहने पर चार सौ साल पहले तत्कालीन शासक गजीउद्दीन हैदर के मंत्री टिकायत राय ने उज्जैन की तर्ज पर यहां भी एक भव्य महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग जो पूरी तरह काले पत्थरों से बनाई गई है, उसे उज्जैन से ही मंगवाया था। मंदिर के पुजारी आचार्य गौतम ने बताया कि यहां पर हर दिन देश-विदेश से लोग आते हैं और कालेश्वर के दर्शन कर मंदिर की बनावट को अपने कैमरों में कैद करते हैं।


ये रहा मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी आचार्य गौतम ने बताया कि करीब चार सौ साल पहले मुगलशासक गजीउद्दीन हैदर का यहां राज था। उसने कानुपर की जिम्मेदारी अपने मंत्री टिकायत राय को दे रखी थी। टिकायत राय भगवान शिव के भक्त थे और वो अक्सर उज्जैन जाया करते और वापस आने के बाद वहां के किस्से लोगों को सुनाते थे। टिकायत राय के एक साथी ने उनसे उज्जैन की तर्ज पर बिठूर में महाकालेश्वर के मंदिर की निर्माण की बात रखी। टिकायत राय ने बिठूर के लोगों से रायसुमारी करने के बाद मुगलशासक को यहां के लोगों की भावनाओं के बारे में जानकारी दी। गजीउद्दीन हैदर ने उज्जैन की तरह बिठूर में महाकालेश्वर मंदिर के निर्माण कराए जाने का आदेश दे दिया।


छह माह में मदिर बनकर तैयार
पुजारी ने बताया कि मुगलशासक के आदेश के बाद मंत्री टिकायत राय मंदिर के निर्माण के लिए जुट गए। टिकायत राय ने उज्जैन से ही कारीगरों को बुलाया और बेहतरीन कालाकृति से सजी दिवारें बनवाई। पुजारी के मुताबिक मंदिर छह माह में बनकर तैयार हो गया। इसके बाद मंदिर में महाकालेश्वर के शिवलिंग की स्थापना करने के लिए पंडित बुलवाए गए। शिवलिंग को उज्जैन से मंगवाकर पूजा-पाठ के बाद मंदिर में स्थापित करवाया गया। शिवलिंग का रंग पूरी तरह से काला है और इसमें जो पत्थर लगाया गया है, उसका इस्तमाल सुनार सोना को पिघलाने के लिए करते हैं। पुजारी ने बताया कि शिवलिंग के अगल-बगल का पत्थर चोर पार कर ले गए हैं, जिसकी कीमत लाखों में है।


गंगा में डुबकी लगाकर भक्त करते हैं दर्शन
ये मंदिर पुरातत्व विभाग के आधीन है और इसका रख-रखाव उन्हीं के लोग करते हैं। सुबह छह बजे मंदिर पूजा-अर्चना की जाती है और शाम छह बजे महाआरती का आयोजन होता है। इस दौरान सैकड़ों भक्त पहले मां गंगा में डुबकी लगाते हैं और फिर महाकालेश्वर के दर्शन कर मन्नत मांगते हैं। पुजारी ने बताया कि यहां पर विदेशी पर्यटक भी ज्यादा संख्या में आकर मंदिर के कालाकृति की फोटो खीचते हैं। मंदिर की ऊंचाई 28.89 मीटर है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। पुजारी ने बताया कि मंदिर में दरवाजे नहीं है। मंदिर 24 घंटे खुला रहता है। शिवलिंग की देखरेख के लिए तीन सरकारी कर्मचारी यहां मौजूद रहते हैं।


सीएम योगी से आस, मंदिर का होगा विकास
मंदिर के पुजारी ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर एतिहासिक धरोहर है, लेकिन पिछली सरकारों के चलते इसकी हालत जीर्ण-क्षीर्ण हो गई है। पुजारी ने कहा कि यूपी की कमान एक संत के हाथों में आई है, इससे हमारी आस बढ़ी है कि सीएम योगी महाकालेश्वर मंदिर का पुनः निर्माण कराएंगे और इसे भी उज्जैन की तरह दर्जा दिलाएंगे। पुजारी ने बताया कि मंदिर की जीर्णोद्धार नहीं होने के चलते कीमती पत्थर खराब हो रहे हैं। हमलोगों ने जीर्णोद्धार के लिउ कदम बढ़ाए थे, लेकिन पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने रोक लगा दी थी। यूपी की कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी कुछ माह पहले बिठूर आई थी, तक हमने उन्हें इस मंदिर के बारे में बताया था। मंत्री ने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए आर्थिक मदद की बात कही थी।

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