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कानपुर

Independence Day : 1857 की गदर में इस योद्धा ने रखी थी गुरिल्ल्ला युद्ध की नींव

नाना साहब ने बनाया अपना सलाहकार, कानपुर में अंग्रेजों को कईबार किया परास्त, गुरिल्ला लड़कों की टोली की तैयार।

कानपुरAug 09, 2019 / 01:05 am

Vinod Nigam

history of tatya tope relation with bithoor in kanpur hindi news

Independence Day : 1857 की गदर में इस योद्धा ने रखी थी गुरिल्ल्ला युद्ध की नींव

कानपुर। Independence Day 2019 Special अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ से जहां आजादी की चिंगारी सुलगी, जिसकी आग कानपुर तक में फैल गई। नानाराव पेशवा nanarao peshwa ने बिठूर bithoor से ब्रिटिश हुकूमत British government के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और शहर, कस्बों और गांव की गलियां खून से लाल हो गई। नाना के सैनिक कईबार अंग्रेजों को धूल चटाया। पर 1857 की गदर Mutiny of 1857 के दौरान वह दौर भी आया जब अंग्रेज भारत के सूरवीरों पर भारी पड़ने लगे, पर तात्या टोपे Tatya Tope ने मुट्ठी भर सैनिकों को बल पर अंग्रेजी सेना की नाक में दम किए रखा। तात्या ने गुरिल्ला युद्ध Guerrilla war का संचालन किया, इन्हीं लड़ाइयों के कारण उन्हें इतिहास में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ छापामार योद्धाओं में गिना जाता है।

डटे रहे तात्या
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई rani laxmibai of Jhansi की शाहदत के बाद क्रांतिकारियों के पैर डगमगाए, पर मराठा रणनीतिकार तात्या युद्ध के मैदान में डटे रहे। पूरे दस माह तक उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ घात लगाकर अकेले हमला करते और बच निकलते। अंग्रेज सैनिक व उनके कमांडर तात्या के गुरिल्ला युद्ध का काट नहीं निकाल पा रहे थे। एमपी व राजस्थान में गुरिल्ला लड़ाई करते हुए तात्या दुर्गम पहाड़ों-घाटियों, बरसात से उफनती नदियों, भयानक जंगलों में अंग्रेजी फौज को चकमा देते रहे। उन्हें कई बार घेरने का प्रयास किया गया परंतु यह योद्धा कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगा और जब भी मौका मिला अंग्रेजों के सैनिकों को मौत के घाट उतारता रहा।

मराठा परिवार में लिया था जन्म
इतिहासकार मनोज कपूर बताते हैं, तात्या का जन्म 1814 में एक मराठी परिवार में हुआ था। तात्या ने ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल आर्मी के तोपखाना रेजीमेंट में भी काम किया था। लेकिन कुछ समय के बाद ही देशप्रेम के कारण तात्या ने अंग्रेजों की नौकरी छोड़ दी और बाजीराव की नौकरी में वापस आ गए। पेशवा ने तात्या को एक बेशकीमती टोपी दी थी। वे बड़े ठाट इसे पहनते थे। इसी वजह से बाद में लोग उन्हें तात्या टोपे के नाम से पुकारने लगे। अंग्रेजों के खिलाफ हुई 1857 की क्रांति में तात्या टोपे का भी बड़ा योगदान रहा.। कपूर राव बताते है।, नाना साहब को नेता घोषित कर तात्या टोपे ने आजादी की जंग का ऐलान कर दिया।

तात्या को बनाया सलाहकार
इतिहासकार मनोज कपूर बताते हैं, तात्या को नाना साहब ने अपना सैनिक सलाहकार नियुक्त किया था। तात्या के नेतृत्व में विद्रोही सेना ने अंग्रेज ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की कमान का शहर के बिठूर में बहादुरी से मुकाबला किया। संघर्षपूर्ण मुकाबले के बावजूद विद्रोही सेना को जुलाई 1857 में पीछे हटना पड़ा। इस संघर्ष में विद्रोही सेना बिखर गई। तात्या ने बिठूर में अपनी सेनाओं का पुनर्गठन किया और कानपुर में अंग्रेजों पर हमले का मौका खोजने लगे। इस बीच हैवलॉक ने अचानक बिठूर पर हमला कर दिया। तात्या बिठूर की लड़ाई में हार गए। वे बहुत बहादुरी से लड़े। इस बात के लिए अंग्रेज सेनापति ने उनकी तारीफ भी की थी।

ग्वालियर में जमाया ढेरा
इतिहासकार मनोज कपूर बताते हैं, बिठूर की हार के बाद तात्या एमपी में राव साहेब सिंधिया के इलाके पहुंच गए। यहां, ग्वालियर की एक प्रसिद्ध सैनिक टुकड़ी को अपने साथ जोड़ा और यहां से झांसी पहुंचे। यहां तात्या ने अंग्रेजों से घिरी लक्ष्मीबाई की मदद की। इस बीच कालपी में तात्या और लक्ष्मीबाई को हार उठानी पड़ी। लेकिन बदला लेने के लिए वो अपने सैनिकों को जंगल में एक माह तक गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी और कालपी की विजय का जश्न मना रहे अंग्रेजों पर धावा बोल दिया। गुरिल्ला युद्ध की जंग में अंग्रेजों को तात्या ने बुरी तरह से पराजित कर किले में कब्जा जमाया।

मुम्बई के गर्वनर के अंदर पैदा की दहशह
मनोज कपूर के मुताबिक, रानी लक्ष्मीबाई की शहादत के बाद तात्या मुम्बई पहुंच गए। तात्या के जोरदार हमलों से मुम्बई प्रांत का गर्वनर हिल गया। तात्या ने महाराष्ट्र के कई इलाकों से अंग्रेजों को खदेड़ दिया। तात्या का मकसद पूरे महाराष्ट्र के अंदर अंग्रेजों को पराजित करने का था और वो धीरे-धीरे आगे बड़ रहे थे। पर तात्या के पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। तात्या ने यहां अपनी राह फिर बदली और खरगोन पहुंच गए। भील सरदार तात्या के साथ आ गए। राजपुर में अंग्रेजों के साथ घमासान लड़ाई में तात्या को हार उठानी पड़ी। हार के बाद फिर से युवाओं को अपने साथ जोड़ने लगे। परोन के जंगल में जब वह गुरिल्ल युद्ध की ट्रेनिंग दे रहे थे, तभी अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और ं18 अप्रैल को हजारों लोगों के सामने खुले मैदान में फांसी पर लटका दिया गया।

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