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कानपुर

आईआईटी कानपुर के साइंटिस्ट ने किया अविष्कार, 11 शहरों में लगाया प्रदूषण मापने का यंत्र

आईआईटी कानपुर के डिपार्टमेंट ऑफ साइंसेज के प्रोफेसर सच्चिदानंद ने बनाई फील्ड कैलिब्रेशन ऑफ एटॉमस मशीन, प्रदूषण की देगी सटीक जानकारी
 

कानपुरSep 09, 2018 / 12:45 pm

Vinod Nigam

IIT Kanpur invention pollution measuring machine in up hindi news

आईआईटी कानपुर के साइंटिस्ट ने किया अविष्कार, 11 शहरों में लगाया प्रदूषण मापने का यंत्र

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मई 2018 में 5 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची जारी की थी। इस लिस्ट में 14 नाम भारतीय शहरों के हैं, जिसमें कानपुर टॉप पर था। इसी के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए आईआईटी को कार्य सौंपा था। संस्थान के डिपार्टमेंट ऑफ साइंसेज ने इस पर रिसर्च शुरू किया और प्रोफेसर सच्चिदानंद के नेतृत्व में यहां के स्टूडेंट्स ने फील्ड कैलिब्रेशन ऑफ एटॉमस नाम की मशीन बनाई है। इस मशीन के जरिए देश के 11 बड़े शहरों में प्रदूषण (पीएम 2.5) का स्तर मापना शुरू कर दिया है। प्रोफेसर सच्चिनंद ने बताया कि संस्थान से इन शहरों के प्रदूषण के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं और जल्द ही एक बेवसाइड बनाकर वहां इन्हें दर्ज करा दिए जाएंगे, जिससे आमशहरी घर बैठे अपने इलाके के प्रदूषण की मात्रा को जन सकेगा। और उसे किस तरह से खत्म किया जाएगा, इसके बारे में भी जानकारी उपलब्ध होगी।

इन शहरों का बताएगी प्रदूषण की मात्रा
चार माह पहले विश्व स्वास्थ्य संगबठन की तरफ से एक रिपोर्ट आई थी। जिसमें कानपुर को दूनिया का सबसे प्रदूषित शहर माना गया था। साथ ही देश के अन्य शहर भी प्रदूषण के दंष से ग्रसित पाए गए थे। इसी से निपटने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ की पहल पर आईआईटी कानपुर आगे आया और दो माह के अंदर प्रदूषण (पीएम 2.5) मापने का यंत्र बना डाला। डिपार्टमेंट ऑफ साइंसेज (डीएसटी) की मदद से आईआईटी ने कानपुर, भोपाल, वाराणसी, पटना, रांची, चंडीगढ़, रायपुर, अहमदाबाद, जयपुर , दिल्ली और देहरादून में पीएम (पर्टिकुलेट मैटर) 2.5 मापने के लिए फील्ड कैलिब्रेशन ऑफ एटॉमस मशीन लगाई है। इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी को दी गई है।

सभी शहरों का डाटा कानपुर में होगा एकत्र
प्रोफेसर सच्चिदानंद ने बताया कि सभी शहरों के प्रदूषण का डाटा आईआईटी कानपुर के मास्टर कंप्यूटर में एकत्र होगा, जिसे देश के 11 शहरों के अधिकारियों को हरदिन उपलब्ध कराया जाएगा। प्रोफेसर ने बताया कि संस्थान जल्द ही एक वेबसाइट भी लॉन्च होगी जिसमें प्रदूषण की मात्रा देखी जा सकेगी। प्रोफेसर ने बताया कि अभी आईआईटी पीएम 2.5 को रिकॉर्ड कर रही है। अगले माह वातावरण में सल्फर डाईऑक्सइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कॉर्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा भी जांचेगी। इस संबंध में 30 अगस्त को ही आईआईटी के वैज्ञानिकों के साथ पर्यावरण मंत्रालय, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, क्लाइमेट चेंज, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की बैठक हुई थी। इसमें तय हुआ था कि 11 शहरों के अलावा अन्य शहरों में भी सस्ते सेंसर लगाए जाएंगे।

कानपुर में किया गया ट्रायल
प्रोफेसर सच्चिनंद के मुताबिक इस मशीन का ट्रायल कानपुर में किया गया है। प्रोफेसर ने बताया कि संथान की पहल पर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने शहर में चार जगह प्रदूषण मापने के लिए सेंसर लगाए हैं। यह सेंसर एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) चेक करते हैं। नेहरू नगर में लगे सेंसर के अनुसार शुक्रवार को पीएम 2.5 का स्तर 72 था। सामान्य स्थिति 50 (पीएम 2.5) होती है। इसे खतरा नहीं माना जाएगा, लेकिन स्थिति चिंताजनक है। पीएम 10 के मुकाबले पीएम 2.5 ज्यादा खतरनाक होता है। यह आकार में भी काफी छोटे होते हैं। इससे अस्थमा, हार्ट संबंधी बीमारी हो सकती है। शहर में जहां-जहां प्रदूषण ज्यादा है, वहां-वहां बीमारी से लोग बड़ी संख्या में ग्रसित हैं। लोगों को कूड़े, कचरे व अन्य प्रकार की समाग्री को नहीं जलानी चाहिए। इलाके में ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपने चाहिए।

प्रदूषण के खात्में की मौजूद होगी जानकारी
प्रोफेसर ने बताया कि संस्थान बेववसाइड के जरिए आमशहरी को प्रदूषण से मुक्ति के लिए जानकारी भी उपलब्ध कराएगा। प्रदूषण की मात्रा बड़ते ही वहां के अधिकारियों को अलर्ट कर दिया जाएगा। साथ ही बेवसाइड से जुड़े लोगों को उनके मोबाइल में किस तरह से प्रदूषण को कम किया जाए उसकी पूरी जानकारी दी जाएगी। प्रोफेसर ने बताया कि डब्लूएचओ रिपोर्ट में यह बात भी सामने आयी है कि 70 लाख लोगों की पूरी दुनिया में मौत बाहरी और भीतर वायु प्रदूषण की वजह से होती है। वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों में 90 प्रतिशत निम्न और मध्य आयवर्ग के देश हैं जिनमें एशिया और अफ्रीका शामिल है। बाहरी वायु प्रदूषण की वजह से 42 लाख मौत 2016 में हुई, वहीं घरेलू वायु प्रदूषण जिसमें प्रदूषित ईंधन से खाना बनाने से होने वाला प्रदूषण शामिल है से 38 लाख लोगों की मौत हुई। पिछले कुछ सालों से कानपुर में मौत का प्रतिशत बढ़ा है।

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