कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा डिलीवरीमैन पर ही होता है। ये लोग उस सिलेंडर को खुले हाथों से छूते हैं जो पहले कितने हाथों में होकर आया है यह किसी को पता नहीं होता। कहीं पर भी सिलेंडर सेनेटाइज नहीं किए जाते। ऐसे में गैस एजेंसी का लगभग हर कर्मचारी भी खतरे में होता है। जबकि डिलीवरीमैन पर खतरा दोगुना होता है, वह दरवाजे-दरवाजे जाकर सिलेंडर पहुंचाता है, ऐसे में किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के घर में सिलेंडर ले जाते वक्त वह शिकार बन सकता है।
घर-घर सिलेंडर पहुंचाने वाले डिलीवरी मैन को ज्यादा पैसा नहीं मिलता है। किसी को महीने तक चार से पांच हजार मिलता है तो कहीं पर प्रति सिलेंडर पांच से आठ रुपए मिलता है। ऐसे में इनकी मौत पर इनके आश्रित रहने वाला इनका परिवार समस्याओं में घिर सकता है। इसलिए इंडियन ऑयल ने यह योजना शुरू की है। जिसमें एलपीजी सिलेंडर घरों में पहुंचाने वाले डिलीवरी मैन, एजेंसियों में काउंटर पर बुकिंग करने वाले क्लर्क, सिलेंडर गोदाम इंचार्ज व कर्मचारी, एजेंसी के मैनेजर व मुनीम भी योजना के दायरे में आएंगे।
जिले की 47 गैस एजेंसियों में एक हजार डिलीवरी मैन व कर्मचारी हैं। प्रदेश में यह संख्या 40 हजार और देश में तीन लाख से ज्यादा है। गैस वितरक संघ के अध्यक्ष भारतीश मिश्रा ने बताया कि योजना की जानकारी है। कुछ दिन पहले कर्मचारियों की सूची मांगी गई थी, जिसे इंडियन ऑयल को उपलब्ध कराया गया था।