किदवई नगर के पते से लिया था बंदूक का लाइसेंस प्रशासन की पड़ताल में सामने आया है कि गोरखपुर निवासी अमरमणि ने कानपुर के किदवईनगर के फर्जी पते पर बंदूक का लाइसेंस लिया था। चूंकि 34 से अधिक मुकदमों में आरोपी होने के कारण अमरमणि त्रिपाठी को गोरखपुर से दूसरा शस्त्र लाइसेंस मिलना मुमकिन नहीं था। ऐसे में सत्ता के रसूख का इस्तेमाल करते हुए 32 साल पहले सेटिंग और फर्जीवाड़े से उन्होंने कानपुर से शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया और किदवई नगर के फर्जी पते पर रिवॉल्वर का लाइसेंस हासिल कर दिया। दस्तावेज के हिसाब से गोरखपुर के 19 ए हुमायूंबाग निवासी अमरमणि त्रिपाठी के नाम से गोरखपुर से रिवाल्वर लाइसेंस (संख्या 85) 15 मार्च 1984 को और दोनाली बंदूक का लाइसेंस (नंबर 78) दो नवंबर 1983 को कानपुर से जारी हुआ था। इस लाइसेंस पर 128/51 सी ब्लॉक किदवई नगर का पता दर्ज है। किदवई नगर के सी ब्लॉक का मकान नंबर 128/51 सेवानिवृत्त बंदोबस्त अधिकारी बाबूराम की पत्नी के नाम है। बाबूराम का निधन हो चुका है। उनके बेटे अशोक सिंह ठेकेदारी करते हैं। अशोक सिंह बताते हैं कि फर्जी पते पर असलहा लाइसेंस बनने का खुलासा 1986 में होने के बाद तत्कालीन किदवई नगर थानाध्यक्ष और चौकी प्रभारी निलंबित हुए थे। उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था। अमरमणि त्रिपाठी के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था।
डीएम माथुर ने दिया था लाइसेंस, डीएम गोयल ने गिराई गाज अमरमणि को तत्कालीन डीएम रवि माथुर ने शस्त्र लाइसेंस जारी किया था। कुछ समय बाद फर्जीवाड़े की शिकायत हुई तो तत्कालीन जिलाधिकारी अनुराग गोयल ने जांच कराई। तत्कालीन किदवई नगर चौकी प्रभारी डूमर सिंह ने 15 दिसंबर 1986 को रिपोर्ट लगाई कि संबंधित पते पर अमरमणि त्रिपाठी न रहते हैं और न कभी रहे हैं। इस जांच रिपोर्ट के बाद एडीएम कोर्ट ने 1986 में लाइसेंस निरस्त कर अमरमणि को बंदूक जमा कराने का आदेश दिया। लाइसेंस निरस्त करने के लिए जिलाधिकारी की कोर्ट में मुकदमा भी चला। 13 मई 1998 को तत्कालीन जिलाधिकारी बीएल भुल्लर की कोर्ट ने लाइसेंस निरस्त कर दिया। इसके बाद अमरमणि ने मंडलायुक्त की कोर्ट में अपील दाखिल करते हुए कहाकि वह ठेकेदारी करते हैं, राजनीति से भी जुड़े हैं। ऐसे में कानपुर आना-जाना रहता है, लिहाजा लाइसेंस रद्द करने पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। इस अपील पर तत्कालीन आयुक्त विजय शंकर ने 10 नवंबर 1998 को डीएम का आदेश पर स्टे देकर गोरखपुर के जिलाधिकारी से अमरमणि के बारे में रिपोर्ट मनांगी। आयुक्त का कहना था कि गोरखपुर में अमरमणि की दबंगई सामने आती है तो असलहा लाइसेंस निरस्त कर दिया जाएगा।
18 साल कागजों में उलझा रहा फर्जीवाड़े की सुनवाई का मामला
नवंबर 1998 से मौजूदा कार्यकाल तक कानपुर में 17 जिलाधिकारी आए और सभी ने वक्त-वक्त पर गोरखपुर के जिलाधिकारियों से रिपोर्ट के लिए रिमांडर भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। पड़ताल की फाइल में आठ डीएम के लेटर और रिमाइंडर संलग्न हैं। बहरहाल, 9 मई 2003 को लखनऊ में कवियित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में अमरमणि त्रिपाठी का नाम आने पर मायावती सरकार ने अपने मंत्री को बर्खास्त कर दिया था। अमरमणि को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बावजूद गोरखपुर में अमरमणि के रुतबे के कारण रिपोर्ट नहीं आई। मौजूदा डीएम सुरेंद्र सिंह ने 18 साल से लटके मामले को खुद संभाला। उन्होंने गोरखपुर के एसएसपी से अमरमणि त्रिपाठी की रिपोर्ट मांगी। वहां से एसएसपी ने बीस दिन पहले अपनी रिपोर्ट बेजकर बताया कि अमरमणि पर 34 केस हैं, तथा वह हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा भुगत रहा है। रिपोर्ट में अपराधिक इतिहास को देखते हुए असलहे के लाइसेंस निरस्तीकरण की संस्तुति भी दर्ज है। इसी रिपोर्ट के आधार पर कानपुर के डीएम ने अमरमणि के शस्त्र लाइसेंस को निरस्त कर दिया।