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कानपुर

मां ने इमादारी का पढ़ाया था पाठ, वर्दी में कभी नहीं लगने दिया दाग

महिला यात्री का रूपए से भरा बैग कानपुर रेलवे स्टेशन में गिरा, जीआरपी के जवान को मिला तो बुलाकर उन्हें वापस किया

कानपुरApr 25, 2018 / 09:26 am

Vinod Nigam

महिला यात्री का रूपए से भरा बैग कानपुर रेलवे स्टेशन में गिरा, जीआरपी के जवान को मिला तो बुलाकर उन्हें वापस किया
कानपुर। सेंट्रल रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या आठ में लावारिस हालात में बैग पड़ा था। तैनात जीआरपी कांस्टेबल की नजर उस पर पड़ी तो वह उसे उठा लिया और खोलकर देखा तो उसके अंदर 28 हजार रूपए, आधार कार्ड, पेन कार्ड सहित अन्य दस्तावेज मिले। आधार कार्ड के जरिए कांस्टेबल ने मुसाफिर का पता और फोन नंबर निकाला और उन्हें फोनकर बैग के बारे में जानकारी मिली। पैसे से भरा बैग नई दिल्ली निवासी महिला बेनू त्रिपाटी का था जो गोरखपुर अपने माता-पिता से मिलने की जा रही थीं। कानपुर में ट्रेन बदलने के दौरान पैसे से भरा बैग वह खो बैठीं थीं। कांस्टेबल के बुलावे पर वह लौटकर कानपुर आई और बैग पाकर गदगद दिखीं। उन्होंने कांस्टेबल की तारीफ की तो वहीं विभाग ने उन्हें नकद पुरूस्कार देकर पीट थप-थपाई।
इमानदारी से कभी नहीं किया समझौता
मुलरूप से औरैया के रहने वाले सुभाष चंद्र जीआरपी कानपुर में बतौर कांस्टेबल के पद पर तैनात हैं। सुभाष ने महिला का बैग वापस करने के बाद कहा, मेरा फर्ज और ड्यिटी थी, जिसे मैंने निभाया। सुभाष के पिता प्राईवेट नौकरी करते थे, तो मां घर संभालती थी और महात्मा गांधी के बताए सच के रास्ते पर चलने की सीख देतीं। इंटर और स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण के बाद सरकारी बाबू की नौकरी के बजाए सेना में जाने का मन बनाया, लेकिन दौड़ निकालने के बाद फिजिकल टेस्ट में फेल हो गए, पर हिम्मत नहीं हारी और यूपी पुलिस में नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। मेहनत रंग लाई और सुभाष चंद का पुलिस में बतौर कांस्टेबल पद पर चयन हो गई। नौकरी के दौरान कभी अपने फर्ज के साथ समझौता नहीं किया। जहां तैनाती मिली, वहां इमादारी से लोगों की सेवा की।
प्लेटफार्म आठ पर पड़ा मिला बैग
सेंट्रल स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर आठ में सुबह के वक्त कांस्टेबल संभाष चंद की ड्यूटी लगी थी। इसी दौरान नई दिल्ली की रहने वाली बेनू त्रिपाठी गोरखुर जाते समय ट्रेन बदलने के चक्कर में कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कीमती सामान से भरा बैग खो बैठी । सुभाष चंद्र ने अंजान बैग को देखा तो उसे उठा लिया। बैग को पड़ताल की तो उसके अंदर 28 हजार रूपए, पेन कार्ड, आधार कार्ड सहित कई दस्तावेज पड़े थे। संभाष चंद ने तत्काल आधार कार्ड के जरिए महिला को फोन कर बैग के बारे में जानकारी दी। महिला गोरखुपर जाने के बजाए बीच रास्ते पर उतर गई और वापस कानपुर आई। यहां सुभाष चंद्र ने जांच पड़ताल के बाद उनका पैसों से भरा बैग वापस कर दिया।
मैंने अपना फर्ज निभाया
जीआरपी के जवान को इस काम के बदले अपने विभाग की तरफ से नकद पुरस्कार और गुड एंट्री का इनाम दिया गया है. सुभाष चंद मूल रूप से औरैया जिले के रहने वाले हैं.। जब उनसे पूछा कि बैग में 28 हजार रुपए नकद थे, आपका ईमान कैसे नहीं डोला? जवाब में उन्होंने कहा कि बेईमानी का पैसा नहीं फलता है। मां बचपन से यही सिखाया है कि बेटे जो मजा मेहनत की कमाई के पैसे में है, वह दूसरी तरी से कमाए रूपए में नही मिलेगा। बस मां के बताए रास्ते पर चल रहा हूं और नौकरी के कई बरस बीत जाने के बाद भी वर्दी में एक भी दाग नहीं लगने दिया। सुभाष चंद कहते हैं कि हां कुछ लोग वर्दी के बल पर गरीब और मजबूर लोगों से पैसे वसूलते हैं और उन्हीं के चलते वर्दी को बदमानी उठानी पड़ती है।
महिला ने थप-थपाई पीठ
सुभाष चंद्र ने यह भी कहा कि मुझे इस बात का भी डर था कि कहीं युवती ने ये कह दिया कि बैग में ज्यादा रुपए थे तो मेरे लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। स्टेशन या ट्रेन में यात्रियों के सामान खोने या चोरी होने की घटनाऐं आम बात है, लेकिन इस तरह उन्हें खोजकर सामान वापस दिलाया जाय, ऐसी घटना विरले ही देखने और सुनने को मिलती हैं। पर युवती ने कांस्टेबल की जमकर तारीफ की। महिला यात्री ने कहा कि यह पैसा मैं अपने बुजुर्ग माता-पिता को देने के लिए जा रही थी। यदि कोई दूसरा व्यक्ति बैग पा जाता तो वह पैसे से भरा बैग वापस नहीं करता।
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