स्वदेशी कारबाइन का निर्माण
अभी एनएसजी कमांडो जर्मनी में बनीं एमपी फाइव कारबाइन का इस्तेमाल करते हैं। इसी साल दिसबंर के अंत तक एनएसजी जवानों के हाथों में स्वदेश निर्मित सीक्यूबी कारबाइन होगी। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान यानी डीआरडीओ के सहयोग से लघु शस्त्र निर्माणी में सीक्यूबी कारबाइन के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया गया है।
सीक्यूबी कारबाइन की विशेषता
सीक्यूबी कारबाइन की विशेषता 200 मीटर तक मार करने की होगी। पास या दूर के टारगेट (दुश्मन) को यह कारबाइन सटीकता के साथ खत्म कर सकेगी। इसका लक्ष अचूक होगा। वर्तमान कारबाइन जर्मन निर्मित है। इसे बाहर से आयात किया जाता है। इसकी कीमत करोड़ों में हैं। लेकिन सीक्यू कारबाइन नए लुक के साथ बेहतर फायरिंग वाली और और सस्ती होगी। जल,थल और वायुसेना के जवान इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान उन्हें सटीक निशानें से उन्हें मारा जा सकेगा। कमांडो सर्जिकल स्ट्राइक में भी इसका आसानी से इस्तेमाल हो सकेगा।
डीआरडीओ की मदद से पार्ट्स भी बनेंगे
आयुध निर्माण इकाई अभी इसका प्रोटोटाइप तैयार कर रही है। डिजाइन और तकनीक में डीआरडीओ के वैज्ञानिक मदद कर रहे हैं। प्रोटोटाइप के बाद इसका निर्माण शुरू कर परीक्षण होगा। इसके साथ निर्माणी इकाई में एसएएफ में अत्याधुनिक एके-203 कारबाइन के पार्ट्स भी बनाए जाएंगे।
अमेठी में बन रही एके-203 कारबाइन
रूस की कंपनी के सहयोग से अमेठी स्थित निर्माणी में एके-203 कारबाइन को बन रही है। इसके लिए आयुध निर्माणी बोर्ड अनुसंधान और प्रोडक्शन में लगा हुआ है। सेना को आधुनिक पीढ़ी की आठ लाख 18 हज़ार 500 असॉल्ट राइफ़लों, चार लाख 18 हज़ार 300 सीक्यूबी, 43 हज़ार 700 हल्की मशीनगनों और साढ़े पांच हज़ार से अधिक स्नाइपर राइफ़लों की ज़रूरत है।