10 माह के वेतन को लेकर उग्र हुए थे मजदूर 41 साल पहले कानपुर में दर्जनों मिलें थी और ये शहर लेवर मूवमेंट का गढ़ हुआ करता था। जुही स्थित स्वदेशी मिल के मालिक ने घाटा दिखाकर मजदूरों को बाहर निकाल दिया। मजदूरों ने अपना बकाया वेतन मालिक से मांगा, जिसे उन्होंने देने से इंकार कर दिया। मिल मैनेजमेंट और मजदूर यूनियनों के बीच बात हुई पर किसी नतीजे तक नहीं पहुंची। मिल के मजदूर रघुवीर बताते हैं कि 6 दिसंबर, 1977 का दिन था और मिल के अंदर मैनेजमेंट और मजदूर नेताओं के बीच बात चल रही थी। इसी दौरान मिल के बाहर खड़े मजदूरों को पीट दिया गया। इसकी भनक जैसे ही अंदर गई तो यूनियन के नेताओं ने आपा खो बैठे और मिल के अंदर, दो अधिकारी, अकाउंटेंट आरपी शर्मा को अगवा कर प्रोडक्शन मैनेजर बीएनके आर्य को बॉयलर में झोंक दिया गया। जिसके चलते बीएनके आर्या की मौके पर मौत हो गई।
सरेंडर नहीं करने पर पुलिस ने की फायरिंग प्रोडक्शन मैनेजर बीएनके आर्य को बॉयलर में झोंके जाने की सूचना पर कई थानों की फोर्स के साथ तत्कालीन एसपी स्वदेशी मिल पहुंचे और अगवा मिल कर्मचारियों को छोड़ने को कहा। लेकिन मजदूरों ने उन्हें छोड़ने से इंकार कर दिया और मिल की छत पर चड़कर पुलिस पर पथराव कर दिया। पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए मजदूरों पर सीधे ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। पुलिस की गोलीबारी से 13 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई और 100 से ज्यादा घायल हो गए। पूर्व मजदूर नेता अनूप कुमार ने मुताबिक इस घटना के बाद पूरे देश के मजदूर हड़ताल पर चले गए और कानपुर में सभ्सी मिलों पर ताले पड़ गए। अनूप बताते हैं कि गोलीबारी में उनके चाचा की भी जान चली गई थी। कई महिलाएं विधवा हो गई। अनूप ने बताया कि इस कांड के बाद कानपुर में मिलों के बंद होने का सिलसिला शुरू हो गया था।
श्रमिक आंदोलन का केंद्र हुआ करता था कानपुर पूर्व मजदूर नेता अनूप कुमार ने मुताबिक कानपुर श्रमिक आंदोलनों का बड़ा केंद्र हुआ करता था। पर स्वदेशी मिल का आंदोलन कानपुर का आखिरी उग्र श्रमिक आंदोलन था। 1977 की घटना को लोग इसलिए भूल चुके हैं क्योंकि कानपुर की बड़ी मिलों के बंद होने के साथ ही शहर के मज़दूरों की जो ताक़त थी, वो ख़त्म हो चुकी है। कानपुर का जो लेबर मूवमेंट था वह छिन्न -भिन्न हो चुका था और सिर्फ कानपुर ही क्यों पूरे देश में लेबर मूवमेंट खत्म हो रहा था। एक समय था जब दत्ता सामंत जैसे लोग मुंबई को हिला देते थे, वह पीढ़ी ख़त्म हो रही थी या ख़त्म हो चुकी थी। 1970 से एक बड़े ट्रेड यूनियन नेता रहे दौलत राम का कहना है कि अगर स्वदेशी मिल अब भी चल रही होती तो कानपुर के मिल मजदूर और आम लोग 6 दिसंबर 1977 की खूनी घटना को जरूर याद रखते।
22 हजार मजदूर करते थे काम पूर्व मजदूर नेता अनूप कुमार ने बताया कि उस वक्त स्वदेश मिल में लगभग 22 हजार मजदूर काम करते थे। मिल में 24 घंटे काम होता था पर मिल की वित्तीय हालत ठीक नहीं थी। वेतन समय पर नहीं मिल रहा था। मिल के पूर्व कर्मचारी इलियास ने बताया कि एक समय ऐसा आया कि हमारा नौ महीने का वेतन बकाया हो गया। मालिकान ने आकउंटेट आरपी शर्मा को मजदूर नेताओं से बातचीत कर हल निकालने के लिए नियुक्त किया। लेकिन उन्होंने मिल घाटे में चल रही है कि बात कहकर महज दो माह का वेतन देने की बात कही। जिस पर मजदूर नेता उनसे भिड़ गए। आरपी शर्मा ने पुलिस के जरिए उन्हें खदेड़ना चाहा। इससे गुस्साए मजदूरों ने उन्हें जिंदा बॉयलर में जलाकर मौत के घाट उतार दिया।
मजदूरों और पुलिस के बीच पांच घंटे तक जबरदस्त संघर्ष पूर्व कर्मचारी कन्हैया लाल बतते हैं कि कर्मचारियों को जिंदा जलाए जाने की बात जैसे पुलिस और प्रशासन को पता हुई तो मिल को पहले चारों तरफ से घेर लिया गया। इस दौरान मजदूरों और पुलिस के बीच पांच घंटे तक जबरदस्त संघर्ष हुआ। पुलिस मिल के गेट को तोड़कर अंदर घुसी। मजदूरों ने पथराव कर दिया। पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए गोली चला दी। इससे मिल के चार बड़े नेताओं की मौत हो गई। पुलिस ने इस दौरान दो हजार से ज्यादा मजदूरों को अरेस्ट कर लिया। तत्कालीन सरकार के हस्तक्षेप के बाद मजदूरों को पुलिस ने छोड़ा। हिंसा के बाद मिल को बंद कर दिया गया और तब से आज तक मिल में ताला पड़ा है।