प्रदेश सरकार ने कुंभर से पहले एक हजार नई बसें बेड़े में शामिल करने का आदेश दिया था। इनमें से पांच सौ बसें कानपुर की कार्यशालाओं में तैयार हुईं और इतनी ही निजीं एजेंसी से बनवाई गईं। इन बसों के चालक केबिन में लगवाने के लिए पांच सौ पंखे और सीटें खरीदी गईं। कार्यशालाओं में लगाए गए पंखे की जो कीमत दिखाई गई, निजी एजेंसी ने उससे सौ रुपए सस्ते में पंखे लगाए। साथ ही कार्यशालाओं के अफसरों ने कुछ यात्री सीटें दूसरे जनपद से तो कुछ कानपुर की कंपनियों से खरीदीं। कानपुर की कंपनी की सीटें गुणवत्तापरक थीं। फिर भी जिम्मेदारों ने दूसरे जनपद की कंपनी से सस्ती सीटें खरीदकर लगवाईं।
जांच अधिकारी विजय नारायण पांडेय ने बताया कि केंद्रीय कार्यशाला रावतपुर और राम मनोहर लोहिया कार्यशाला विकासनगर में पांच सौ बसों की बॉडी निर्माण में करोड़ों रुपए के खेल की जांच मुख्यालय स्तर पर जारी है। 18 मार्च तक हरहाल में परिवहन आयुक्त को रिपोर्ट सौंप दी जाएगी। इसके बाद दोषियों पर गाज गिरनी तय है।
जांच अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय कार्यशाला के प्रधान प्रबंधक रवींद्र सिंह, एआरएम वित्त आरके निगम, राम मनोहर लोहिया कार्यशाला के प्रधान प्रबंधक मनोज रंजन एवं सेवा प्रबंधक जांच के घेरे में हैं। सेवा प्रबंधक की जिम्मेदारी क्वालिटी कंट्रोल की होती है। जांच में यह भी पता चला है कि कीमती एलईडी और अन्य खर्च पर कोई दो करोड़ रुपए खफा दिए गए। पता चला है कि कार्यशालाओं में लगाई गई एलईडी और सामान सस्ते में खरीदा और महंगा दिखा दिया। इसमें लगभग सवा दो करोड़ रुपए का गोलमाल किया गया है।