19 को -धरना प्रदर्शन का ऐलान
एससी-एसटी कानून अब मोदी सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। जहां पहले सवर्ण समाज के लोग इस कानून के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं वहीं अब अन्य संगठन भी इसके खिलाफ हल्लाबोल दिया है। कानपुर के वकील इस कानून के खिलाफ 19 सितंबर को विशाल धरना-प्रदर्शन का ऐलान किया है। साथ ही देश के अन्य वकीलों से अपील की है कि वो भी इस दिन कार्य नहीं करेंगे और एससी-एसटी बिल के खिलाफ आवाज बुदंल कर सरकार तक अपनी बात पहुंचाएंगे। बार एसोसियशन के पूर्व महामंत्री दिनेश शुक्ला ने कानपुर प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि एससी-एसटी के विरोध में आंदोलन चलाया जा रहा है। 1989 से अब तक एससी -एसटी कानून का दुरूपयोग हो रहा था। सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान में लेकर विचार करने के बाद कहा की मुकदमा लिखते ही तत्काल गिरफ़्तारी नहींं होनी चाहिए। सरकार ने उस कानून को किनारे करते हुए अध्यादेश लाकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को उलट कर रख दिया जिससे सामान्य जन जीवन अस्त व्यस्त है।
वोट बैंक के चलते बदला निर्णय
बार एसोसियशन के पूर्व महामंत्री दिनेश शुक्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर वर्ग की रक्षा और विकास की बात करते हैं पर उन्होंने एससी-एसटी एक्ट कानून को बदल कर बता दिया कि वो भी अन्य राजनेताओं की तरह जातिगत राजिनीति करते हैं। उन्हें भी एक वर्ग के वोट खिसकने की चिंता थी और इसी के कारण आनन-फानन मे ंसंसद में बिल पास करा दिया गया। जबकि ऐसे कई बिल आज भी संसद में अटके हैं, जिन्हें पास कराने के लिए सत्ता और विपक्ष के कानों में जूं तक नहीं रेंगकी। कहा, सवर्ण के साथ ऐसा हर व्यक्ति जो कहीं ना कहीं एससी-एसटी कानून से पीड़ित रहा है वो सभी आहत और परेशान है। बार एसोसियशन के पूर्व महामंत्री दिनेश शुक्ला ने बताया कि कानपुर कोर्ट में एससी-एसटी एक्ट से पीड़ित लोगों की संख्या हजारों के पार पहुंच गई है। अब तो लोक भैंस चोरी होने पर एससी-एसटी के तहत मुकदमा दर्ज करा सवर्ण को जेल भेज रहे हैं।
1989 में बनाया गया था यह कानून
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर उबाल उस वक्त सामने आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।
कोर्ट ने यह बदलाव किए थे
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा. शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।
सरकार ने बदला कोर्ट का आदेश
एससी-एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा (18ए) जोड़ी जाएगी।. इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अलावा आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे। जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा.। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी।