इंडियन साइक्रेट्रिक सोसाइटी ने भी केंद्र सरकार को पत्र भेजकर मनोरोग को एमबीबीएस में अलग विषय के रूप में पढ़ाए जाने की सिफारिश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि एमबीबीएस का पाठ्यक्रम अपडेट होगा तो इसमें मनोरोग के बढ़ते दायरे कारण एमसीआई ने यह पहल की है।
मनोरोग विषय को अभी तक मेडिसिन पाठ्यक्रम में एक चैप्टर के रूप में पढ़ाया जाता है। मगर इससे यूपी के छात्रों को विषय की पूरी जानकारी नहीं मिल पाती है। दूसरी ओर इसमें मनोरोग से जुड़े नए तथ्य भी अभी तक शामिल नहीं हो पाए हैं।
एमबीबीएस के चार साल के कोर्स के बावजूद छात्रों को मनोरोग विषय की पूरी जानकारी नहीं हो पाती है। इस कोर्स में सीजोफ्रेनिया सरीखी कुछ बीमारियों के बारे में ही बताया जाता है। मनोरोग के मरीज बढऩे से एमसीआई ने मेडिसिन विभाग से मनोरोग को पहले ही स्वतंत्र कर दिया गया है।
एमसीआई ने मेडिकल कॉलेजों से बीते दस सालों का जो फीडबैक लिया है, उसके मुताबिक मनोरोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। मनोरोग की ओपीडी में नित नए मरीज आ रहे हैं। इसमें छोटे बच्चों और युवाओं की संख्या भी खासी है। छोटे बच्चों के साथ युवाओं में भी बढ़ते डिप्रेशन से उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ रहा है।
विषय विशेषज्ञों ने नशेबाजी को भी मनोरोग ही बताया है। ज्यादातर मामलों में मनोरोगी नशे का सहारा लेते हैं, हालांकि इससे उनकी स्थिति और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है। नशे के चलते मनोरोगी का सही तरीके से इलाज भी नहीं हो पाता है।