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कानपुर

पूर्व विधायक ने मुलायम को बताया यूपी की सियासत का सुल्तान

चंदे के पैसे से चुने गए थे विधायक, रामअसरे ने मुलायम सिंह यादव को बताया बेजोड़ नेता, यूपी में फिर से साइकिल को दौड़ाएंगे सियासी अखाड़े के सुल्तान।

कानपुरApr 01, 2019 / 11:30 am

Vinod Nigam

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पूर्व विधायक ने मुलायम को बताया यूपी की सियासत का सुल्तान

कानपुर। लोकसभा चुनाव अपने सबाब पर हैं। राजनीतिक दल 2019 के दंगल को फतह करने के लिए जुटे हुए हैं तो वहीं कुछ नेता टिकट नहीं मिलने के चलते दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। इस बीच यादव परिवार के करीबी व मुलायम सिंह के मित्र घाटमपुर विधानसभा के पूर्व विधायक पंडित राम आसरे अग्रिहोत्री (83) ने नेता जी के बारे में कई खुलाशे किए। बताया, यूपी की सियासी अखाड़े के एक मात्र सुल्तान मुलायम सिंह यादव हैं। भले ही आज परिवार में रार है, लेकिन सुल्तान फिर से दहाड़ेंगे और सूबे में समाजवाद को डंका बजाएंगे।

15 साल की उम्र में गए थे जेल
पूर्व विधायक बताते हैं कि पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने 15 साल की कम उम्र में ही राजनीतिक अखाड़े में कदम रख दिया था। इसकी शुरुआत 1954 में हुई, जब उन्होंने समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के नहर रेट आंदोलन में भाग लिया और जेल गए. इस दौरान वो राम सेवक यादव, कर्पूरा ठाकुर, जनेश्वर मिश्र और राज नारायण जैसे दिग्गजों के टच में आए. मुलायम सिंह ने राजनीति के शुरुआती दिनों में मजदूर, किसान, पिछड़ों, छात्र व अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए जमकर आवाज उठाई। आपातकाल के बाद जब हम 21 माह के बाद जेल से रिहा हुए और विधायक चुने गए तब मुलायम सिंह के करीब आए और पूरा जीवन समाजवाद के नाम कर दिया।

ऐसे बनें सियासत के खिलाड़ी
पूर्व विधायक ने कहा कि समाजवादी पार्टी की स्थापना करने वाले ऐसे महान नेता ने देश के लिए बहुत कुछ किया है। किसानों के लिए जेल गए तो आपातकाल के दौरान भी कांग्रेस के खिलाफ लड़े। उन्होंने ही यूपी से पहले कांग्रेस को बेदखल किया और फिर भाजपा को चुनावी अखाड़े में पटखनी देकर सूबे के किंग बनें। बताया, मुलायम सिंह इकलौते किसान नेता हैं, जिन्होंने पूरी जिंदगी इनके नाम कर दी। यही वजह रही कि मुलायम सिंह के साथ यूपी की साठ फीसदी आबादी रही। कहते हैं, आज के वक्त समाजवादी पार्टी ट्रक से उतर चुकी है, पर हमें पूरा विश्वास है कि मुलायम सिंह जल्द ही इसे दोबारा दुरूस्त कर दौड़ाएंगे।

मुलायम का दिया था साथ
अतीत में डूबते उतराते राम आसरे अग्रिहोत्री बताने लगते हैं कि वर्ष 1990 में चैधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह व मुलायम सिंह के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए शक्ति परीक्षण हुआ, तो वह मजबूती के साथ मुलायम के साथ खड़े हुए। 1993 में बसपा के साथ गठबंधन के बाद मुलायम सिंह ने उनकी टिकट काट दी। तो उनके मुंह पर ही विरोध का एलान कर वापस घाटमपुर लौटे। कार्यकर्ताओं को जोड़ कर जनता दल का समर्थन कर घाटमपुर के अलावा पड़ोसी भोगनीपुर व जहानाबाद सीट से भी गठबंधन प्रत्याशियों को धूल चटाकर जनता दल प्रत्याशियों को जीत दिलाई।

मुलायम ने कांग्रेस का किया खात्मा
पूर्व विधायक बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने 1989 में यूपी से कांग्रेस के खात्में की शुरूआत की थी। उन्होंने 4 अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में समाजवादी पार्टी के गठन की घोषणा की. ये वो वक्त था, जब उनके पास खास जनाधार नहीं था। मुलायम सिंह ने बसपा के साथ गठबंधन किया और यूपी की सत्ता में समाजवादी विचारधारा की सरकार बनाई। मुलायम के चलते मायावती आज इस मुकाम में पहुंची हैं। पूर्व विधायक कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव की एक खूबी है कि मुलायम सिंह अपने कार्यकर्ताओं को आज भी पहचानते हैं और देखकर नाम लेकर बुलाते हैं। इनकी यही खूबी सियासत का सुल्तान बनाती है।

कभी नहीं चूके नेता जी
मुलायम सिंह को जब भी लोगों ने कमजोर समझा, वो दुगुनी ताकत के साथ सियासत में खड़े पाए गए। 1995 में सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह 1996 में वो मैनपुरी से सांसद चुने गए और रक्षामंत्री बनें। इसके बाद 1998 में चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। 1999 में मुलायम सिंह संभल और कन्नौज सीट से जीते। 2003 में मुलायम सिंह की फिर यूपी में वापसी हुई और वो 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। 2012 में जब राज्य में सपा सरकार बनी तो उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सीएम बनाया। कुल आठ बार विधायक और एक बार विधान परिषद् सद्स्य रहने वाले मुलायम सिंह तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. वह 6 बार लोकसभा सांसद बन चुके हैं।

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