अपने चुनाव चिन्ह का आसानी से घर-घर तक प्रचार करने के लिए पुराने समय में प्रत्याशी अपने चुनाव चिन्ह माचिस पर छपवाकर घर-घर बांटते थे। माचिस का हर घर में प्रयोग होता है, इसलिए प्रचार का यह सबसे सशक्त माध्यम था। उस समय की माचिस भी आलोक के संग्रह में शामिल हैं।
बात इतनी पुरानी है कि शायद हमने इस बारे में सुना भी नहीं होगा। आज कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा है पर तब कांग्रेस दो बैलों की जोड़ी वाले निशान पर चुनाव लड़ती थी। १९५२ से १९५७ तक यही चिन्ह रहा, फिर बदल गया। समता पार्टी भी उस समय मशाल निशान पर चुनाव लड़ती थी। उस दौर की माचिस भी आलोक के पास ही देखने को मिलती है।
आलोक का माचिसों का संगह छोटा-मोटा नहीं है। उनके पास करीब एक लाख पुरानी माचिसें हैं। इनमें दो इंच से लेकर डेढ़ फीट लंबी तक माचिस है। कीमत की बात करें तो पांच पैसे से लेकर ५०० डॉलर कीमत वाली माचिस भी इस अजीबोगरीब संग्रह में शामिल है।
माचिसों का यह संग्रह आलोक ने १९८० से शुरू किया था। उस समय आलोक कपड़े की दुकान पर बैठते थे। दूर-दूर से लोग आते थे और उनके पास मिली माचिस से वह खेलने लगते, बस तभी से यह शौक उन्हें लग गया और उन्हें इन्हें संग्रहित कर रखा है।