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कानपुर

कुएं से प्रकट हुई थी तपेश्वरी, चार मूर्तियों की अद्भुत पहेली

बिरहना रोड पर स्थित है मंदिर, मां सीता ने किया था तप, कुएं से प्रकट हुई थी मां तपेश्वरी

कानपुरOct 11, 2018 / 11:02 am

Vinod Nigam

navratri 2018 tapeshwari mata temple kanpur news

कुएं से प्रकट हुई थी तपेश्वरी, चार मूर्तियों की अद्भुत पहेली

कानपुर। नवरात्रि पर्व के चलते शहर के सभी देवालयों में सुबह से लेकर देरशाम तक भक्तों का तांता लगा है। चाहूंओर माता रानी के जयकारों की गूंज है और भक्तगण मंदिरों में आकर माथा टेक मंन्नत मांग रहे हैं। ऐसा ही एक मंदिर बिरहना रोड पर स्थित है। मान्यता है कि जो दंपित्त संतान सुख से वंचित हैं, वो यहां आकर हाजिरी लगाएं तो उनके आंगन में किलकारियों की गूंज सुनाई देती है। मन्नत पूरी होने पर दंपत्ति अपने बच्चे को लेकर यहां आते हैं और कनछेदन करवाते हैं। मंदिर के पुजारी पंडित राधेश्याम के मुताबिक मां सीता ने यहीं आकर तप किया और कुएं से एक मूर्ति निकली, जिसे मंदिर के अंदर विस्थापित करवाया गया और इसी के बाद भक्तों ने इन्हें माता तपेश्वरी नाम दिया। पुजारी बताते हैं कि माता सीता के साथ यहां महालक्ष्मी, महाकाली, महागौरी की मूर्तियां स्थापित हैं। लेकिन मां सीता सहित अन्य देवियों की मूर्ति की पहचान आज तक कोई नहीं कर पाया।

कुछ इस तरह से है मंदिर का इतिहास
पुजारी ने बताया कि 80 लाख साल पहले त्रेता युग में लंका पर विजय के बाद भगवान राम ने अयोध्या का राजपाट ग्रहण किया। नगरवासियों का हाल जानने राम रात को निकलते थे। एक रात उन्होंने एक धोबी को मां सीता का हवाला देते हुए अपनी पत्नी को ताना मारते सुना, जिसे सुनकर वह द्रवित हो गए और उन्होंने भारी मन से मां सीता का त्याग कर दिया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम द्वारा परित्याग किए जाने के बाद सीता कानपुर के निकट बिठूर में स्थित वाल्मीकि आश्रम में रहने लगी। जहां उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। ऐसी मान्यता है कि लव- कुश के जन्म के बाद सीता इस मंदिर में आराधना के लिए आई थीं । दोनों बालकों को महर्षि वाल्मीकि को सौंपने के बाद माता सीता यहां तप करने के लिए रुक गई थीं। तप साधना में उनके साथ तीन अन्य देवियां भी थीं। मान्यता है कि तप के कुछ साल बाद पास के कुएं से एक मूर्ति निकली जिसे तपेश्वरी नाम दिया गया।

लव-कुश का करया था कनछेदन
पुजारी ने बताया कि मां सीता ने बिठूर से नाव पर सवार होकर बिरहना रोड आईं थीं। यहीं पर एक पेड़ के नीचे विराजी मां तपेश्वरी के दरबार पर अपने दोनों बेटों के कान छेदन करवाया था। इस दौरान वाल्यमीकि भी मौजूद थे। उसी समय वाल्यमीकि ने यह घोषणा की थी कि इस मंदिर पर जो भी अपने बच्चों का कान छेदन करवाएगा वह बच्चे लव और कुश की तरह बुद्विमान और पराक्रमी होंगे। तब से कानपुर के साथ ही अन्य शहरों के भक्त यहां आते हैं और कान छेदन करवाते हैं। मंदिर पर कान छेदने वाले भक्त सरोज देवी व उनके पति राजेश ने बता़या कि शादी के पांच साल बाद तक हमारे घर का आंगन सूना था। हमने माता रानी के दरवार पर हाजिरी लगाई और हमें संतान सुख की प्राप्ति हुई। नवरात्रि पर हम अपने एक साल के बेटे का कन छेदने के लिए घाटमुपर से तपेश्वरी मंदिर आए हैं।

आज भी मूर्तियों का रहस्य बरकरार
मंदिर के पुजारी के मुताबिक कुंए से निकली मूर्ति के बाद यहां तीन अन्य देवियों महालक्ष्मी , महाकाली और महागौरी की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित की गईं। मंदिर में चार देवियों की मूर्तियां विराजमान है,लेकिन इन चारों में से सीता मां की मूर्ति कौन सी है ? कोई नहीं बता सकता । मंदिर के पंडित राधेश्याम ने बताया कि यहां मां सीता के साथ तीन और महिलाओं ने भी यहीं पर तप किया था। उसी के बाद से इस मंदिर में चार देवियों की मूर्तियां स्थापित की गई। इसमें से मां सीता की मूर्ति कौन सी है,आजतक यह रहस्य बना हुआ है। महिला भक्त रेखा ेने बताया कि पूरे नवरात्र माता चारो माताओं की पूजा जरूर करती है। पिछले 25 सालों से यहां आ रही हूं। वहीं एक अन्य भक्त सिखा खरे ह ने कहा कि इस मंदिर में 29 साल से पूजा करने आ रही हू,आजतक कोई परेशानी नहीं हुई।

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