सपेरे में दबोचा
लालबंगला इलाके में राकेश की किराने की दुकान है। शाम के वक्त जब वो दुकान बंद करने लगा तभी उसे गोह नजर आया। दुकानदार के शोर मचाने से स्थानीय लोग आ गए। पहले लोगों ने उसे भगाने का प्रयास किया, लेकिन गोह टस के मस नहीं हुआ। फिर पीआरवी 418 की टीम आई और एक सपेरे को बुलाया। सपेरे ने गोह को पकड़ कर एक बोरे में भी जंगल में छोड़ आया। सपेरे ने बताया कि गोह का जहर कोबरा सांप से भी खतरनाक होता है। इसके डसने से इंसान की चंद मिनट के अंदर मौत हो जाती है। ये प्रजाति राजस्थान के अलावा पथरीले इलाकों में पाई जाती है।
बेजोड़ औजार हुअस करती थी गोह
जू के डॉक्टर आरके सिंह बताते हैं इसकी खासियत यह होती है कि दीवार पर यदि इसे छोड़ दिया जाए तो विपक जाती है और फिर टस के मस नहीं होती। बताते हैं, पुराने समय में जो काम हाथी घोड़े नहीं कर पाते थे, उसे गोह आसानी से कर देती थी। इनकी कमर में रस्सा बांधकर दीवार पर फेंक दिया जाता था और जब ये अपने पजों से जमकर दीवार पकड़ लेती थी, तब रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ जाते थे। कुछ हिंदी फिल्मों में ये दृश्य यदा-कदा आपने देखे भी होंगे।
पूंछ की मार असरदार
डॉक्टर आके सिंह बताते हैं यह सात फीट तक लंबी होती है। इसकी पूंछ की मार बड़ा असर करती है। और इसका गुस्सैल स्वाभाव किसी की भी जान लेने के लिए काफी है। इसे विशेष रूप से युद्धों में या गुप्त रहस्यों का पता करने के लिए उपयोग किया जाता था। बारिश के सीजन में ये कई बार जंगल से बाहर निकल आती है। इसे रेगिस्तान की छिपकली के नाम से भी जाना जाता है। कानपुर के अलावा आसपास के जनपदों में भी ये जन्तु पाया जाता है।