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कानपुर

मिशन 2019 : मोदी का रथ सात राज्यों में अटकेगा, 198 सीटों पर जीत हुई मुश्किल

अलबत्ता सर्वे में 78 फीसदी लोगों ने नरेंद्र मोदी को काबिल बताया और दोबारा पीएम की कुर्सी पर देखना चाहा है।

कानपुरJul 06, 2018 / 04:13 pm

आलोक पाण्डेय

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मिशन 2019 : मोदी का रथ सात राज्यों में अटकेगा, 198 सीटों पर जीत हुई मुश्किल

आलोक पाण्डेय

कानपुर. क्या होगा 2019 में ? यह एक ऐसा सवाल है, जोकि मतदाताओं से लेकर सियासी पंडितों के बीच आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल का जवाब किसी के पास पुख्ता तौर पर उपलब्ध नहीं है। खबरनवीस के पास भी नहीं, इसी उधेड़बुन में पार्क में टहलने के दौरान केरल के मुरलीधरन नायर से मुलाकात हुई। मुरली दक्षिण भारत की राजनीति के अच्छे जानकार हैं। कुछ दिन पहले एक सर्वे की टीम के अहम किरदार थे। उन्होंने वर्ष 2019 में देश की सियासत की एक तस्वीर को कैनवास पर खींचा। यह तस्वीर तो भाजपा की हार की संभावना जताती है, अलबत्ता किंतु-परंतु के साथ। मौजूदा हालत बताते हैं कि अगले आम चुनावों में भाजपा को लोकसभा की 543 सीटों में 198 पर हार का सामना करना पड़ेगा। शेष 345 में भाजपा को लड़ाई करनी होगी। ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। अलबत्ता सर्वे में 78 फीसदी लोगों ने नरेंद्र मोदी को काबिल बताया और दोबारा पीएम की कुर्सी पर देखना चाहा है। मतदाताओं की यह चाहत भाजपा के लिए संजीवनी का काम करेगी।

विपक्ष के महागठबंधन से भाजपा को छूट रहा पसीना

नायर ने सबसे पहले तर्क दिया यूपी के उपचुनावों का, जहां गोरखपुर जैसा किला भी गठबंधन की ताकत से ध्वस्त हो गया। फूलपुर और कैराना तो भाजपा के गढ़ ही नहीं हैं। फिलहाल, यूपी के साथ-साथ बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में संयुक्त विपक्ष का गठबंधन बनाने की तैयारी है। चुनाव-पूर्व गठबंधन की तैयारियों में जुटा है। सर्वे में सामने आया है कि सात राज्यों की कुल मिलाकर 252 लोकसभा सीटों में भाजपा को 198 पर हार का सामना करना पड़ेगा, जबकि पिछले चुनाव में उक्त 198 सीटों में 176 पर एनडीए का कब्जा था। विपक्ष के संभावित गठबंधन से भाजपा भी परेशान है, इसी कारण 50 फीसदी से ज्यादा वोट बटोरने की जुगत में अमित शाह एंड कंपनी जुटी है।

कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान, ममता या राव होंगे पीएम

सर्वे और राजनीतिक स्थितियों के अनुसार, यूपी में गठबंधन की अगुवाई सपा करेगी, लेकिन बसपा को ज्यादा सीटें मिलेंगी। कांग्रेस को यूपी में 12 सीट मिलने की संभावना है। इसी प्रकार बिहार में लालू यादव की आरजेडी के नेतृत्व में कांग्रेस, शरद यादव का गुट और जीतनराम मांझी साथ होंगे। नीतीश कुमार नाराज हैं, लेकिन बीजेपी के साथ ही चुनाव लड़ेंगे। पड़ोसी राज्य झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी और बाबू लाल मरांडी के बीच गठबंधन की कोशिश जारी है। कुल मिलाकर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कई विपक्षी पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ चुनाव-पूर्व गठबंधन पर काम शुरू कर दिया है। इन पार्टियों का लक्ष्य हर राज्य के मुताबिक गठबंधन करके अपनी राजनीतिक शक्ति को बढ़ाना और राज्यों में भाजपा की ताकत को कम करना है। सर्वे में लोगों ने प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा पसंद किया है, जबकि दूसरे नंबर पर ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव हैं। दोनों को ग्यारह फीसदी वोट मिले हैं। मायावती को बतौर प्रधानमंत्री सिर्फ सात फीसदी लोग देखना चाहते हैं।

फार्मूला तय नहीं, लेकिन वोट ट्रांसफर कराने की जुगत

नायर बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 158 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि सहयोगी दलों को 16 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई थी। सातों राज्यों में बीजेपी लहर के अलावा गैर-बीजेपी दलों के बीच दूरी ने भी भगवा पार्टी को जीत दिलाई थी। तमिलनाडु में बीजेपी को सिर्फ 1 सीट पर ही जीत मिली थी, लेकिन राज्य की 39 में 37 सीटों पर जीत हासिल करनेवाली एआईडीएमके संसद के अंदर और बाहर बीजेपी के अनौपचारिक सहयोगी दल के रूप में काम करती रही है। फिलहाल, विपक्षी पार्टियां सीट-बंटवारे के फार्मूले पर रजामंदी नहीं बना पाई हैं, लेकिन अपने वोटबैंक को गठबंधन की पार्टी को ट्रांसफर करने की रणनीति में जुट गई हैं। यह रणनीति 2004 की तरह होगी, जब विपक्षी पार्टियों ने वाजपेयी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए कई राज्यों में चुनाव-पूर्व गठबंधन किए थे।

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