पूर्व पीएम का कानपुर से था गहरा नाता, बीमारी की खबर सुन मंदिरों में पूजा तो रमजान के माह में मस्जिद में स्वस्थ्य होने के लिए नासिर मूसा ने अदा की नवाज
कानपुर•Jun 12, 2018 / 09:58 am•
Vinod Nigam
अटल जी के अस्वस्थ्य होने पर रो पड़ा कानपुर, सलामति के लिए मस्जिद में अता की नमाज
कानपुर। पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठतम नेता अटल बिहारी वाजपेयी को नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में सोमवार को भर्ती कराया गया। इसकी खबर जैसे ही देश के लोगों को मिली तो पूजा-पाठ का दौर शुरू हो गया। लोग उनके जल्द ठीक होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। पूर्व पीएम का लगाव कानपुर से ज्यादा था, इसी के चलते यहां के लोगों के दिल में अटल जी बसतें हैं और अपने प्रिय नेता की सलामती के लिए आन्नदेश्वर मंदिर में माथा टेका, तो वहीं रहमत व बरकतों के महीने रमजान में बजरिया निवासी नासिर मूसा ने मस्जिद में जाकर अटल जी के ठीक होने के लिए नमाज अदा कर जल्द से जल्द स्वस्थ्य होने के लिए दुआ मांगी। नासिर की भाभी और बड़े भाई जो रोजे हैं उन्होंने भी अटल जी के स्वस्थ्य होने के लिए नमाज पढ़ी।
दुआवों का दौर जारी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी पिछले कई माह से बीमार चल रहे थे, जिनका इलाज उनके निवास में डॉक्टर करते थे। लेकिन सोमवार को उन्हें कुछ दिक्कत हुई जिसके कारण डॉक्टर अटल जी को लेकर एम्स में एडमिट कराया। डॉक्टरो ंने बयान जारी कर बताया कि वाजपेयी को सिर्फ रूटीन चेकअप के लिए भर्ती कराया गया है। यह खबर जैसे एम्स से बाहर निकली तो वहां पीएम मोदी, राहुल गांधी समेत सभी दलों के बड़े-बड़े नेता उन्हें देखने के लिए मौके पर पहुंचे। इसी दौरान देश के करोड़ो ंलोग अपने प्रिय नेता के स्वस्थ्य होने के लिए पूजा-अर्चना और मस्जिदों में नमाज तो गुरूद्धारों में प्रार्थना का सिलसिला शुरू हो गया। कानपुर के आन्देश्वर मंदिर परिसर में अटल जी के स्वस्थ्य लाभ के लिए विशेष पूजा-अर्चना की तो वहीं बजरिया निवासी जाकिर मूसा ने रमजान के महिने में मस्जिद में जाकर अटल जी के जल्द ठीक होने के लिए नमाज अदा कर अल्ला-ताला से दुआ मांगी।
इस बीमारी से पीड़ित हैं अटल
अटल बिहारी वाजपेयी (93) डिमेंशिया नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। वे 2009 से ही व्हीलचेयर पर हैं। कुछ समय पहले भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। बाजपेयी 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लखनऊ से लोकसभा सदस्य चुने गए थे। वह बतौर प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूर्ण करने वाले पहले और अभी तक एकमात्र गैर-कांग्रेसी नेता हैं। 25 दिसंबर, 1924 में जन्मे वाजपेयी ने भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए 1942 में भारतीय राजनीति में कदम रखा था। अटल जी ने अपनी शिक्षा-दिक्षा कानपुर से पूरी की। इसी के चलते उनका लगाव गंगा की नगर से रहा। डीएबी कॉलेज से पिता के साथ लॉ की पढ़ाई की और झाड़े रहो कलक्टरगंज रूपी नारा कनपुरियों को दे गए, जो आज भी लोगों के जुबां पर रहता है।
भाषण के बाद मिला था सुकून
नासिर मूसा ने बताया कि अटल जी लोकसभा चुनाव के लिए कानपुर आए थे। उनके साथ फिल्म एक्टर शत्रुघन सिंहा भी थे। हमें जब बॉलीबुड के एक्टर के आने की जानकारी हुई तो अपने पिता के साथ हत उंगली पकड़ कर फूलबाग पहुंच गए। पर वहां जब अटल जी ने भाषण दिया, जिसे सुनकर पिता के साथ हम भी रो पड़े। अटल जी ने कविताओं के जरिए लोगों को नेकी पर चलने का रास्ता दिखाया। इसी के बाद से हमने तय कर लिया कि हम अटल जी के बताए रास्ते पर चलेंगे। आज भी हमारे घर में अटल जी के साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो है। मूसा कहते हैं कि मुस्लिम समाज आजादी से लेकर आज तक कांग्रेस, सपा और बसपा को वोट देता आ रहा है। लेकिन इन दलों ने हमारे विकास के बारे में नहीं सोचा। राजनीतिक दलों की सोच थी कि अगर यह बढ़ जाएंगे तो भाजपा के साथ जा सकते हैं। इसी के चलते आज हमारा समाज पिछड़ गया।
चार साल तक कानपुर में रहे अटल जी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर के गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह राजनीति शास्त्र की डिग्री के कानपुर आ गए। आर्थिक स्थित खराब होने के चलते तत्कालीन राजा जीवाजीराव सिंधिया ने उनकी मदद की। बाजपेयी जी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से लगभग चार साल तक शिक्षा ग्रहण किया। कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर सुमन निगम ने बताया कि अटल बिहारी जी ने 1945-46, 1946-47 के सत्रों में यहां से राजनीति शास्त्र में एमए किया। जिसके बाद 1948 में एलएलबी में प्रवेश लिया लेकिन 1949 में संघ के काम के चलते लखनऊ जाना पड़ा और एलएलबी की पढ़ाई बीच में ही छूट गई। जब बाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तो कॉलेज के नाम एक पत्र लिखा था जो साहित्यसेवी बद्रीनारायण तिवारी ने संस्थान को सौंप दिया। उस पत्र में कुछ रोचक और गौरवान्वित कर देने वाली घटनाओं का जिक्र है।
10 रूपए का मिला था इनाम
सुमन निगत ने बताया कि छात्रावास में अटल जी अपने पिता के साथ एक ही कमरे में रहते थे। विद्यार्थियों के झुंड के झुंड उन्हें देखने आते थे। दोनों एक ही क्लास में बैठते थे। यह देख प्रोफेसरों मे चर्चा का विषय बना रहता था। कभी पिताजी देर से पहुंचते तो प्रोफेसर ठहाकों के साथ पूछते, कहिये आपके पिताजी कहां गायब हैं? और कभी अटल जी को देर हो जाती तो पिताजी से पूछा जाता आपके साहबजादे कहां नदारद हैं। अटल जी ने अपने पत्र में आजादी के जश्न 15 अगस्त 1947 का भी जिक्र करते हुए लिखा है कि छात्रावास में जश्न मनाया जा रहा था। जिसमें अधूरी आजादी का दर्द उकेरते हुए कविता सुनाई। कविता सुन समारोह में शामिल आगरा विवि के पूर्व उपकुलपति लाला दीवानचंद ने उन्हें 10 रुपये इनाम दिया था।