पीएफ विभाग के सूत्रो ंकी मानें तो सरकार के इस फैसले से नियोक्ताओं को फायदा होगा। इससे नियोक्ताओं को कम अंशदान जमा करना पड़ेगा। जबकि कर्मचारियों का इसमें नुकसान होगा। नियमानुसार २० से अधिक कर्मचारियों वाले संस्थान में पीएफ का नियम लागू होता है। ऐसे कर्मचारियों की सैलरी से १२ फीसदी राशि हर माह पीएफ विभाग में जमा होती है। नियोक्ता भी उस पीएफ अकांउट में १२ फीसदी अंशदान जमा करता है। इसमें ८.३३ प्रतिशत हिस्सा कर्मचारी के पेंशन फंड के तौर पर और ३.६७ फीसदी पीएफ फंड में जमा होता है। कुल १५.६७ फीसदी अंशदान जमा होता है।
अंशदान कम होने से नियोक्ता ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों को पीएफ के दायरे में ला सकेंगे। अभी तक अंशदान ज्यादा होने से नियोक्ता कर्मचारियों को पीएफ के दायरे में लाने से बचने के लिए नया-नया तरीका अपनाते थे। अब ज्यादा कर्मचारियों को इसका लाभ मिल सकेगा। सरकार का मानना है कि ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों का भविष्य निधि संगठन में पंजीकरण होना चाहिए। ताकि सभी कर्मचारियों को पीएफ जैसी सामाजिक सुरक्षा मिल सके।
ईपीएफ से पेंशन पाने वाले कर्मचारियों को राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) का विकल्प दिया जा सकता है। हालांकि एनपीएस से संतुष्ट न होने पर कर्मचारी वापस पीएफ पेंशन से जुड़ सकता है। अभी तक एनपीएस केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए ही थी, इस इसमें प्राइवेट कर्मचारियों को भी जोड़ा जा सकता है।