वो कहती हैं कि मेरी बेटी शेरनी की तरह मौत की नींद सोई है। उसके लिए भी स्मारक बननी चाहिए। यमुना और नोन नदी के दोआब में बसे गुढ़ा का पुरवा गांव में एक फूंस की झोपड़ी में अपनी दूसरी बेटी रामकली और उसके बेटे के साथ रह रही फूलन की करीब 79 वर्षीय मां मूला आज भी अपनी इस ख्वाहिश के साकार होने का इंतजार कर रही है।
क्या कहती है फूलन देवी की मां
गांव के लोगों का कहना है कि मूला देवी ठीक से बात भी नहीं कर पाती हैं। वृद्धावस्था और घरेलू परेशानियों के चलते अब उनका दिमाग ठीक से काम नहीं करता। कुछ भी पूछने पर वो गांव के ही कुछ लोगों द्वारा कब्जाई गई जमीन के बारे में बताने लगती हैं कि फूलन की मौत के बाद उनकी 4-5 बीघा जमीन पर लोगो ने कब्जा कर लिया, जिससे आज वह दाने दाने को तरस रही है। जबकि उनकी बेटी की एक आवाज पर जाने कितने घरों में अनाज पहुंच जाता था। आज उसकी मां की सिसकारियां सुनने वाला कोई नही है। जिस फूलन ने लोगो की समस्याओं के लिए जंग लड़ी। आज उसकी यादगार के लिए स्मारक बनवाने को कोई आगे नही आ रहा है।
क्या थी फूलन की कहानी
चंंबल की रानी कही जाने वाली फूलन 10 अगस्त 1963 को जालौन जिले में जन्मी थी। घरवालों ने 11 साल की उम्र में एक अधेड़ से शादी करा दी थी। शादी के बाद फूलन के साथ 15 साल की उम्र में गैंगरेप की घटना घटित हुई। तो उसने न्याय के लिए दरवाजे खटखटाये लेकिन जब किसी ने सुनवाई नही की तो अंत मे फूलन ने आखिरकार हथियार उठा लिए और खुद फैसला करने निकल पड़ी। फिर बदला लेने के लिए उसने सवर्ण वर्ग के 22 ठाकुरों को लाइन से खड़ा करके गोलियों से भून दिया। जिसके बाद 1983 में फूलन ने कई शर्तों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया और जब सपा सरकार बनी तो 1994 में फूलन को जेेेल से रिहा किया गया। वहीं 2 साल बाद मिर्जापुर लोकसभा सीट से उसे टिकट दिया गया। फूलन यहां से जीतकर दिल्ली पहुंच गई। अब वह सुुुकूून का जीवन जीना चाहती थी लेकिन 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन की दिल्ली में ही हत्या कर दी थी।