सीआईएइ के पूर्व निदेशक डॉ. आर टी पाटिल ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण इलाकों की अपेक्षा दालों का सेवन ३५ प्रतिशत कम होता है। इसी वजह से शहरियों का खाना बैलेंस नहीं रहता। लगभग २००० कैलोरी ऊर्जा में १५ प्रतिशत ऊर्जा दालों से मिलनी चाहिए। एक ग्राम प्रोटीन प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से खानी चाहिए। इसे पूरा करने के लिए एक इंसान को ७५ ग्राम दाल रोजाना खानी चाहिए।
इस बार देश में दलहन का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। बीते वर्षों की अपेक्षा दो गुना उत्पादन से भारतीय दलहन संस्थान के वैज्ञानिक खासे उत्साहित हैं। अभी तक दालों का आयात करने वाला देश अब इस स्थिति में है कि वह दूसरे देशों में निर्यात कर सकता है। दाल के बढ़े उत्पादन से देश समेत दुनिया भर में चर्चा हो रही। इसे लेकर फूड एंड एग्रीकल्चरल आरगेनाइजेशन (एफएओ) ने पहली बार विश्व दलहन दिवस मनाया। संस्थान के ऑडिटोरियम में आयोजित समारोह में राष्ट्रीय दलहन संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र प्रताप सिंह ने उपलब्धियों की रिपोर्ट पेश की।
जल्द ही आपको रेस्टोरेंट और मॉल में जल्द दालों के डिजाइनर आइटम मिल सकेंगे। पिज्जा, बर्गर, स्प्राउंट, डोसा, पास्ता, नूडल्स, दाल चटनी, बिस्कुट व अन्य फास्ट फूड दालों के बने हुए मिलेंगे। यही नहीं आप चाहेंगे तो डिब्बे में सादी और फ्राई दाल मिलेगी। राष्ट्रीय दलहन संस्थान ने कई कंपनियों से वार्ता शुरू की है। जो दालों के ऐसे प्रॉडक्ट बनाएंगी जिससे बच्चों को जंक फूड से छुटकारा दिलाया जा सके।
संस्थान की इस मुहिम से बाजार के साथ-साथ किसानों की आय दो गुना करने में मदद मिलेगी। निदेशक डॉ. नरेन्द्र कुमार सिंह के मुताबिक अमेरिका और यूरोप को दाल खाने की तरकीब इंडिया के वैज्ञानिक बताते हैं। वहां लोग भारतीय दालों की तरह दाल नहीं बनाते, उन्हें फास्ट फूड के विकल्प पर दालों से बने उत्पाद दिए जा रहे हैं। इससे दालों से मिलने वाली प्रोटीन और खनिज की आपूर्ति होती है। चाइनीज फास्ट फूड के विकल्प के लिए दालों से जुड़े उत्पाद बनाने को कंपनियां तैयार हैं। डॉ. एनपी सिंह के मुताबिक इससे कंपनियों का बिजनेस भी बढ़ेगा। विश्व दलहन दिवस पर दाल से बनने वाले विभिन्न स्वादिष्ट खान-पान का प्रदर्शन किया गया।