उसने बताया कि घर में शौचालय न होने से हम लोगों को बाहर खुले में शौंच जाते देख वो चिंतित रहते थे। पात्र होने के बावजूद शौचालय न मिलने पर उन्होंने अफसरों के दफ्तरों के कई चक्कर काटे, लेकिन कोई शौंचालय नहीं मिला। पिता को दौड़ भाग करते देख हम सभी लोग द्रवित थे। फिर जब वजीफे के रुपए आए तो घर में शौचालय बनवाकर पिता की चिंता को दूर कर दिया। इसके साथ ही देश के प्रधानमंत्री के सपने को साकार करने में सहयोग भी किया।
उसने बताया कि यमुना पट्टी की तरफ बसे गांव में शौचालय न होने से लोग खुले में शौच जाते हैं, जो समय को देखते हुए घरवालों के लिए चिंता का विषय होता है। पिता ने ग्राम प्रधान से लेकर अफसरों से गुहार लगा डाली, लेकिन नतीजा सिफर निकला। थक हारकर बीटीसी कि पढ़ाई के लिए आने वाले रुपए को मैंने शौंचालय में लगा दिया। फिलहाल आरती के इस सराहनीय कार्य के लिए लोग उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। यही कि एक शिक्षित ने बेटी होने व देश का नागरिक होने का दायित्व बखूबी निभाया है। आरती का यह काम आज क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।