महागठबंधन की घोषणा पर अखिलेश ने पार्टी कार्यकर्ताओं को जो हिदायत दी थी, सपाइयों ने उस पर अमल नहीं किया। कानपुर से लेकर अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र में कई स्थानों पर बैठकों के दौरान दोनों नेताओं में आपसी मेल देखने को नहीं मिला। कभी मंच पर बैठने को लेकर सपाई बसपा नेताओं पर हावी रहे तो कभी बैठक में बसपाइयों की कम संख्या पर सपाई आरोप लगाते रहे।
सपाइयों ने बसपा नेताओं पर वोट ट्रांसफर न कराने का गंभीर आरोप लगाया है। सपा नेताओं का कहना था कि अगर बसपा का काडर वोट भी सपा प्रत्याशी को मिल जाता तो जीत आसान हो जाती, पर जनसंपर्क के दौरान बसपाई पीछे-पीछे ही रहते थे। खुलकर प्रचार में साथ नहीं आए।
सपा के सदस्यता अभियान पर भी उंगली उठ गई है। दरअसल पार्टी के सदस्य रजिस्टर पर जितने सक्रिय और सामान्य सदस्यों की संख्या दर्ज है, अगर उतने वोट भी मिल जाते तो तस्वीर कुछ और होती। लेकिन इतनी कम संख्या में मिले वोटों से यह भी आशंका जताई जा रही है कि शायद सदस्यता अभियान में पार्टी ने फर्जी आंकड़े पेश किए हैं। लोगों का यह भी कहना है कि सदस्यता अभियान केवल कागजों पर ही चलाया गया।
सपा नेताओं का कहना है कि सपा प्रत्याशी की घोषणा के बाद कुछ लोगों ने मुस्लिम इलाकों में डमी प्रत्याशी की अफवाह फैला दी थी, जिस वजह से पूरा मुस्लिम वोट बिखर गया और कांग्रेस और सपा के बीच में बंट गया। अगर थोक मुस्लिम वोट सपा को मिलता तो ऐसी हालत नहीं होती।