चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने लंबे शोध के बाद यह कामयाबी पाई है। सीएसए के कुलपति प्रो. सुशील सोलोमन ने बताया कि ताइवान में इस पर लंबे समय से शोध चल रहा था। अब वहां की तकनीक अपनाकर सीएसए में गन्ने की खोई से चीनी तैयार की जाएगी।
कुलपति ने बतया कि गन्ने की खोई में सेलुलोस अधिक मात्रा में होती है। सेलुलोस को एक विशेष प्रकार की चीनी (आइसोमाल्टोस ऑलिगो सेक्राइन) में परिवर्तित किया गया। इस चीनी में वे तत्व बेहद कम होते हैं जो शुगर बढ़ाते हैं। इस कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए हानिकारक नहीं होगीख् जबकि साधारण चीनी से शरीर में अपने आप शुगर विकसित हो जाती है।
गन्ने की खोई से तैयार होने वाली चीनी स्वाद में साधारण चीनी जैसी ही होगी। इसके प्रयोग के बाद मधुमेह के रोगियों को इंसुलिन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। जबकि साधारण चीनी खाने वाले मधुमेह रोगियों को काफी मात्रा में इंसुलिन देना पड़ता है।
सीएसए के कुलपति प्रो. सुशील सोलोमन ने बताया कि नवम्बर में ताइवान के वैज्ञानिक प्रो. वेन चेन ली भारत का दौरा करेंगे और उसी दौरान दोनों देशों के बीच गन्ने की खोई से चीनी निर्माण की तकनीक को लेकर समझौता होगा। जिसके बाद ताइवान की तकनीक से देश में चीनी का उत्पादन शुरू हो जाएगा। भारत के साथ-साथ ताइवान में भी गन्ने की खोई से ही चीनी उत्पादन भी शुरू होगा।