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कानपुर

रॉबिनहुड ने इंदिरा गांधी के ऑफर को ठुकराया, राजीव को विदेशी बता कोर्ट में दायर की याचिका

भौंती निवासी भगवती प्रसाद दीक्षित ने पूरा जीवन करप्शन के खिलाफ लड़ते-लड़ते लगा दिया, इंदिरा गांधी के न्योते को ठुकरा के खिलाफ चुनाव में उतरे राबिनहुड

कानपुरOct 13, 2018 / 02:03 pm

Vinod Nigam

special story on bhagwati prasad dixit known as ghode wale dixit

रॉबिनहुड ने इंदिरा गांधी के ऑफर को ठुकराया, राजीव को विदेशी बता कोर्ट में दायक की याचिका

कानपुर। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले अन्ना हजारे को आज देश का बच्चा-बच्चा जानता था, पर इनसे पहले भी कानपुर के भौंती गांव में छोटे हजारे ने किसान के घर में जन्म लिया था। गुलामी के दौर में उन्होंने आंख खोली और आजादी के बाद उन्हें भ्रष्टाचार रूपी राक्षस से सामना करना पड़ा। जिसे खत्म करने के लिए उन्होंने पूरा जीवन लगा दिया। उनसे प्रभावित होकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी पत्र देकर अपने घर बुलवाया और कांग्रेस की सदस्यता लेने को कहा, पर भौंती के रॉबिनहुड ने उनका न्योता ठुकरा दिया और खुद उन्हीं के खिलाफ चुनाव के मैदान में उतर गए। जनता ने भरपूर समर्थन दिया, पर वोट नहीं मिला और इमानदारी की जीगती-जागती मिशाल भगवती प्रसाद दीक्षित को हार के बाद पागलखाने भी जाना पड़ा। बावजूद वो हारे नहीं और स्वस्थ्य का प्रमाण-पत्र लेकर हर चुनाव में मैदान उतरे और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को विदेशी बता उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर वहां भी दो-दो हाथ किए थे।

कौन थे भगवती प्रसाद दीक्षित ?
इटावा जिले के अलछंदा कस्बे के रहने वाले स्व. भगवती प्रसाद दीक्षित का जन्म 1927 में कानपुर के भौती गांव में ननिहाल में हुआ। वहां के प्राइमरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई कानपुर के डीएवी कॉलेज में की। उनके हाथ में हाथी दांत की छड़ी हुआ करती थी, जिसे उन्हें नेपाल नरेश ने दिया था। 1952 में कानपुर डेवलपमेंट बोर्ड में इनकी नौकरी बिल्डिंग अधीक्षक के पद लगी थी। भौंती निवासी राजकरन बताते हैं इनके ईमानदारी से भ्रष्ट अधिकारियों की परेशानी बढ़ गई। इसके बाद इनके साथ काम करने वाले अधिकारी इनके खिलाफ एकजुट होने लगे। एक बिना नक्शे के बने मकान को गिराने को लेकर कानपुर डेवलपमेंट बोर्ड के सभी अधिकारी इनके खिलाफ हो गए। लेकिन इन्होंने किसी की नहीं सुनी और उस बिल्डिंग को गिरा दिया। इसके बाद इनको झूठे आरोप में फंसा दिया गया। इसी के चलते रॉबिनहुड ने केडीए से रिजाइन देकर भष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया।

भिजवा दिया पागलखाने
1961 में ग्रीनपार्क में आयोजित एक समारोह में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्त मुख्य अतिथि के रूप में आए हुए थे। समारोह के बाद वो कुछ अधिकारियों के साथ खाना खा रहे थे। उसी बीच घोड़े वाले दीक्षित वहां पहुंच गए और अपने बाजे को बजाकर सबको अपनी और आकर्षित किया। इन्होंने मुख्यमंत्री से कहा स्वामी आप जिन अधिकारियों के साथ खाना खा रहे हैं, वो सब भ्रष्ट अधिकारी हैं। आपको इन लोगों के साथ खाना शोभा नहीं देता। ऐसे में तो लगता है, जैसे आप भी इनके साथ मिले हुए हैं। इसके बाद इनको वहां पुलिसवालों ने बाहर ले जाकर बहुत पीटा, और मुख्यमंत्री के कहने पर इनको आगरा पागलखाने भेज दिया गया। डॉक्टरों ने इनको एक महीने के बाद छुट्टी दे दी, लेकिन इन्होंने जिद्द पकड़ ली कि जबतक हमें पागल ना होने सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, यहां से नहीं जाएंगे। इसके बाद उनको वहां के अधिकारी ने सर्टिफिकेट देकर बिदा किया।

राजीव गांधी के खिलाफ कोर्ट गए
भगवती प्रसाद दीक्षित ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और उनकी भारत की नागरिकता पर सवाल खड़े कर दिए थे और दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल कर दिया। ये केस 3 साल तक चला था। इनका कहना था कि जब राजीव गांधी ने इटली की सोनिया से शादी की है, तो इनको इटली की नागरिकता लेनी चाहिए। इनका भारत के किसी भी प्रदेश से चुनाव लड़ने पर पाबंदी हो जाए। लेकिन बाद में ये मामला खारिज कर दिया गया। राजकरन ने बताया कि भगवती प्रसाद दीक्षित ने 1962 में कानपुर लोकसभा सीट से एसएन बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन वो हार गए। इसके बाद 1967, 1969, 1971, 1977, 1980, 1982, 1984 और 1991 में चुनाव लड़ा था। इसी बीच करीब 3 बार इन्होंने राष्ट्रपति का भी चुनाव लड़ा था। इंदिरा गांधी के खिलाफ पहली बार साल 1969 में फूलपुर से चुनाव लड़ा था। इसके बाद रायबरेली और चिकमंगलूर से भी इनके खिलाफ चुनाव लड़ा था।

मतों में करवा दी थी फेराफेरी
राजकरन बताते हैं कि भगवती प्रसाद दीक्षित ने बिना पैसे के चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया। मजदूरों के शहर ने उन्हें भरपूर समर्थन दिया। राजकरन के कहते हैं कि 1980 में कानपुर के युवाओं की फौज उनके घोड़े के पीछे-पीछे चलती थी। कांग्रेस को हार की भनक लग गई और उसने अधिकारियों ने इनको हराने के लिए वोटों के साथ हेरफेर करके कांग्रेस के कुरैशी को विजयी बना दिया था। चुनाव में मिली हार के बाद उन्होंने हार नहीं मानीं और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे। राजकरन बताते हैं के इमानदार नेता, नौकरशाह और समाजसेवी ने 1 अक्टूबर 2013 दोपहर 12.10 बजे इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

उनके दल में सिर्फ दो सदस्य
समाजसेवी व दीक्षित से करीब राजेंद्र खरे कहते हैं कि आज के दौर पर जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ। पर दीक्षित ने इसके खात्में की लिए पूरी जिंदगी लगा थी। बताते हैं कि 2011 में हमारी मुलाकात उनसे हुई तो दीक्षित जी राजनेताओं पर जमकर बरसे थे और कहा था कि आज नहीं तो कल फिर कोई राबिनहुड आएगा और इसे खत्म करेगा। राजेंद्र खरे ने बताया कि दीक्षित जी की पार्टी के दो स्थायी सदस्य थे। एक वे खुद दूसरा उनका घोड़ा। वे कहा करते थे कि अगर वे चुनाव जीते तो घोड़े के साथ लोकसभा में जायेंगे।

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