लखनऊ स्थित नेशनल बूटानिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रो. पूनम सिंह ने बताया कि पराली से कोयले की तरह जलने वाला पत्थर बनाया जा सकता है जो गांवों में खाना बनाने के काम आ सकता है। इसके अलावा ईंट और डिजाइनर सामान बनाने की तकनीक को उन गांवों में विकसित किया जाना चाहिए, जहां पर किसान पराली जलाते हैं। इससे पराली जलाने पर रोक लगेगी और प्रदूषण भी कम होगा।
डीएवी कॉलेज में आयोजित सेमिनार में प्रो. सिंह ने कहा कि जब तक पराली से किसानों को लाभ नहीं होगा, तब तक वह उसे जलाना बंद नहीं करेंगे। उन्हें पता होना चाहिए कि पराली जलाने से उन्हें और वायुमंडल को कितना नुकसान हो रहा है। अगर वे पराली नहीं जलाते हैं तो उनकी अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। यह भी प्रयास होने चाहिए कि पराली जलाने वाले किसान खुद ही उनसे उपयोगी चीजें बना सकेंं।
पराली से सीएनजी भी बनाई जा सकती है। जिसकी शुरूआत फिलहाल हरियाणा के करनाल में हो चुकी है। यहां इस साल मई महीने में इसका प्लांट शुरू होने के आसार हैं। इस प्लांट के लिए जर्मनी से मशीनें मंगाई जाएंगी। इस प्लांट को लगाने में महिंद्रा और आईजीएल का भी सहयोग लिया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, इस प्लांट से आसपास के 10 से 15 गांवों में पराली को जलाने से रोका जा सकेगा। इस प्लांट में बनने वाली सीएनजी को ट्रैक्टर में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए फिलहाल 12 ट्रैक्टरों को सीएनजी में बदला जा रहा है। सीएनजी इस्तेमाल करने से किसानों को 40 फीसदी तक की बचत होगी।
कार्यशाला में डॉ. एस के तिवारी ने कम्पोस्ट खाद के फायदे बताए। उन्होंने कहा कि आर्गेनिक पदार्थों को खाद में तब्दील कर खेतों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह खेती की पुरानी परंपरा का हिस्सा है। इससे किसानों को भी लाभ होगा और पैदावार भी बेहतर होगी। साथ ही साथ पर्यावरण में प्रदूषण भी कम होगा।