अभी तक टीबी के मरीजों को आइसोनियाजिड दवा 5 एमजी प्रति किलो (मरीज के वजन) के हिसाब से दी जाती थी। इस डोज से बीमारी का लंबे समय तक उपचार चलता था और दवा काफी हद तक कारगर नहीं हो पा रही थी। यही डोज दुनिया भर में टीबी के मरीजों को दिया जाता है, जिस कारण टीबी का मरीज लंबे समय तक बीमारी से जूझता रहता है।
टीबी के मरीजों पर पुराने डोज की दवा कारगर नहीं हो रही थी तो डॉ. कटियार ने उसकी डोज 5 एमजी से बढ़ाकर 10 एमजी कर दी। इसके अच्छे परिणाम आने लगे। उनका यह प्रयोग करीब दस वर्ष तक चला। जब इस डोज से टीबी मरीजों का मुकम्मल इलाज होने लगा तो उन्होंने इस शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दावा किया। डॉ. कटियार के शोध पत्र को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग्स डिसीज ने प्रकाशित किया तो पूरी दुनिया ने इसे मान्यता दी। डब्ल्यूएचओ ने अप्रैल 2019 में टीबी की नई डोज स्वीकार करने की सिफारिश की।