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कानपुर

चावल के शौकीनों की पहली पसंद बना सीएसए का यह खास गेहूं

कम कैलारी और ज्यादा प्रोटीन की वजह से साउथ इंडिया मेें रहती है ज्यादा मांग कन्नौज और फर्रुखाबाद में इस प्रजाति का होता है सबसे ज्यादा उत्पादन

कानपुरNov 19, 2019 / 12:55 pm

आलोक पाण्डेय

चावल के शौकीनों की पहली पसंद बना सीएसए का यह खास गेहूं

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कानपुर। देश के दक्षिणी हिस्से के लोग वैसे तो चावल ज्यादा पसंद करते हैं, लेकिन चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का यह खास गेहूं दक्षिण भारतीयों की पहली पसंद बन गया है। इस गेहूं से तैयार लच्छा पराठा दक्षिण भारतीयों को भा रहा है। खासतौर पर गेहूं की तीन प्रजातियां के-402, के-607 और के-306 यह तीन प्रजातियां लच्छेदार पराठा बनाने में इस्तेमाल हो रही हैं। इस वजह से इन प्रजातियों का गेहूं देश के दक्षिणी हिस्से में भी कानपुर का नाम चमका रहा है।
इन जिलों में होता ज्यादा उत्पादन
सीएसए के इन खास प्रजाति वाले गेहूं का उत्पादन कानपुर और आसपास जिलों कन्नौज, फर्रुखाबाद और बुंदेलखंड में ज्यादा हो रहा है। तमिलनाडु, आंध प्रदेश और कर्नाटक में इन प्रताजियों की जबरदस्त डिमांड है। इन प्रदेशों में गेहूं बीजों का उत्पादन कर रही कई कंपनियों ने भारी डिमांड भेजी है। इसे देखते हुए विश्वविद्याल इन प्रजातियों की अतिरिक्त बुआई कराएगा। अधिकारियों के मुताबिक कंपनी चाहेगी तो वह किसानों से सीधे भी सम्पर्क कर उत्पादन करा सकती हैं।
कम कैलोरी और ज्यादा प्रोटीन
इस प्रजाति के गेहूं की एक खास बात इसे दक्षिण भारतीयों का फेवरेट बनाती है। कानपुर, विवि के शोध निदेशक डॉ. एचजी प्रकाश का कहना है कि इन प्रजातियों की खासियत यह है कि इसमें कैलोरी कम और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इससे यह गेहूं वजन कम बढ़ाता है और ताकत ज्यादा देता है। डॉ. प्रकाश के मुताबिक यह प्रजाति वर्ष 2011 में पूरे देश की जलवायु के लिए उपयोगी घोषित की जा चुकी है। दक्षिण भारत में भी इसका उत्पादन संभव है।
डायबिटीज में भी फायदेमंद
इन प्रजातियों की सबसे खास बात यह है कि इनमें कैलोरी कम पाई जीती है। आमतौर पर 300 से अधिक कैलोरी सामान्य गेहूं की प्रजातियों के 100 ग्राम आटे में मिल जाती हैं। मगर इसमें 280 कैलोरी मिलती है। प्रतिदिन दो पराठे से दैनिक जरूरतों का 30 फीसदी प्रोटीन की मात्रा पूरी हो सकती है। इन प्रजातियों में सामान्य गेहूं की अपेक्षा 18 फीसदी ज्यादा प्रोटीन होता है। ग्लूटेन भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो लस पैदा करने के लिए उपयोगी है। कार्बोहाइड्रेड, मैंग्नीसियम, फास्फोरस, फाइटिक एसिड, कापर, जिंक, फोलेट-विटामिन बी, फोलेट को फोलिक एसिड या विटामिन बी-9 भी पर्याप्त पाया जाता है।

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