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कानपुर

बाहुबली अतीक के चलते बंट गया था यादव परिवार, अखिलेश-शिवपाल के बीच जारी है सियासी संग्राम

कैंट विधानसभा से शिवपाल ने दिया था टिकट, अखिलेश ने बाहुबली की जगह कांग्रेस को सौंप दी थी सीट, इसी के बाद दोनों के बीच शुरू हो गई थी टकरार

कानपुरAug 28, 2018 / 09:48 am

Vinod Nigam

Unknown facts about Atique ahmed and Akhilesh Shivpal dispute

मुलायम परिवार पर बाहुबली अतीक अहमद पड़ा था भारी, इसी के बाद अखिलेश-शिवपाल के बीच सियासी जंग जारी

कानपुर। एक वक्त था जब यूपी के लोग कहा करते थे कि मुलायम सिंह के कुनबे की नींव इतनी मजबूत है कि इसे कोई तूफान डिगा नहीं सकता। लेकिन विधानसभा चुनाव 2017 के पहले यादव परिवार में जो सियासी संग्रम शुरू हुआ वो आज भी जारी है। भतीजे अखिलेश यादव की उपेक्षा के चलते चाचा शिवपाल यादव किसी भी वक्त बड़ा निर्णय ले सकते हैं और सपा सुप्रीमो के मिशन 2019 में पानी फेर सकते हैं। पर इस राजनीतिक जंग की कहानी बीस माह पहले लिखी गई थी। तब बतौर प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पूर्व सांसद व बाहुबली नेता अतीक अहमद को कानपुर की कैंट विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था। इसी के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर साइकिल पर कब्जा किया और अतीक का टिकट काट सीट कांग्रेस को दे दी। अखिलेश के इस कदम से जहां अतीक को बड़ी भारी कीमत चुकानी के साथ ही मोदी लहर होने के बावजूद भाजपा को यहां से हार उठानी पड़ी।

20 माह पहले पड़ी थी फूट
तत्यकालीन सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने 17 दिसंबर 2016 को यूपी विधानसभा चुनाव के लिए 325 उम्मीदवारों के नाम की सूची मुलायम सिंह को सौंपी थी। इस सूची में ऐसे कई विवादित चेहरों को जगह मिली है जिनके नामों पर कथित रूप से अखिलेश यादव को आपत्ति थ्ी। चाचा और भतीजे के बीच हुए संघर्ष में खुलकर अखिलेश के पक्ष में सामने आने वाले उनके कई करीबियों का टिकट काट शिवपाल यादव के पंसदीदा चेहरों पर मुलायम सिंह ने मुहर लगा दी थी। इन्हीं में से इलाहाबाद के बाहुबली नेता. कई बार पाला बदलकर सपा और बसपा में रहे. विवादित शख्सियत अतीक अहमद को कानपुर की कैंट विधानसभा से टिकट देकर चुनाव के मैदान में उतार दिया गया। उस वक्त अखिलेश यादव ने अतीक को टिकट दिए जाने के खिलाफ जमकर विरोध किया, लेकिन उनकी नहीं चली।

इसी के बाद एक्शन में आए अखिलेश
कैंट विधानसभा सीट से शिवपाल यादव ने सपा से इलाहाबाद के बाहुबली नेता अतीक अहमद को टिकट दिया था। लाख बना करने के बाद जब पिता व चाचा ने उनकी बात नहीं मानीं तो प्रोफेसर रामगोपाल को मिला पहले साइकिल पर कब्जा किया। शिवपाल यादव से सारे पद छीन लिए और नरेश उत्तम को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बना पिता को पार्टी का संरक्षक की जिम्मेदारी देकर यूपी की सियासत ही बदल दी। अखिलेश यादव ने र्शिवपाल के अधिकतर उम्मीदवारों के टिकट काट दिए, कईयों को दल से बाहर कर दिया। सबसे पहली गाज बाहुबली अतीक अहमद पर गिरी। उनका टिकट काट कैंट सीट कांग्रेस को देकर अखिलेश ने चाचा शिवपाल को खुली चुनौती दे डाली।

अतीक ने बीजेपी का बिगाड़ा था खेल
मुस्लिम बाहूल्य सीट होने के बावजूद यहां 1991 से लेकर 2017 तक बीजेपी जीतती रही। लेकिन 2016 में शिवपाल यादव ने बाहुबली अतीक अहमद को यहां से टिकट देकर चुनाव के मैदान में उतार दिया। महज दो माह के चुनाव प्रचार के दौरा अतीक ने पूरी तरह से बाजी ही पलट दी। कैंट में सिर्फ अतीक का डंका बजा। पर टिकट कट जाने से वो यहां से चुनाव नहीं लड़ पाए और अतीक की बनाई जमीन पर कांग्रेस के सोहेल अंसारी ने बीजपी को पटखनी देकर जीत दर्ज की। अगर कैंट सीट के इतिहास की बात करें तो 1989 से पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। 1980 में भूधर नारायण मिश्रा यहां से जीते तो 1985 में पशुपति नाथ ने यहां से कांग्रेस का परचम लहराया। 1989 में जब चुनाव हुआ तो जनता दल की लहर पूरे शबाब पर थी और पार्टी के उम्मीदवार गणेश दीक्षित ने यहां से जीत दर्ज की। जब 1991 में भाजपा अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण करने के वायदे के साथ मैदान में उतरी। राम लहर का परिणाम था कि इस सीट पर भाजपा के सतीश महाना जीते। उन्होंने कांग्रेस के श्याम मिश्रा को हराया तब से लगातार भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज करती रही।

बीजेपी की नैया पार लगाएंगे शिवपाल !
अखिलेश यादव की बेरुखी और बीते उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी की बढ़ती नजदीकियों के बाद से ही शिवपाल यादव अपने लिए अलग रास्ता तलाशना शुरू कर दिया था। इस बीच सपा-बसपा के संभावित गठबंधन की काट तलाशने में जुटी भाजपा को शिवपाल सिंह यादव के रुख में अपना फायदा दिखाई दे रहा है। यही कारण माना जा रहा है कि पिछले दिनों जब शिवपाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले और अपने आईएएस दामाद अजय यादव की प्रतिनियुक्ति यूपी में बढ़ाने का आग्रह किया तो सरकार ने तेजी दिखाते हुए महज तीन दिन के भीतर ही इसका प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया। दरअसल, भाजपा को इसका पक्का अहसास है कि समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाने में शिवपाल सिंह यादव उसके लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। वह कद्दावर नेता रहे हैं और उनके पीछे समर्थकों की बड़ी संख्या है जो अब समाजवादी पार्टी में उपेक्षित हैं। इसी कारण भाजपा की निगाह शिवपाल पर टिकी हुई है।

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