देवर्षि नारद ने यहां बनाया था स्थान बताया जाता है कि देवर्षि अधिकतर भगवत भजन में मस्त रहते थे। एक बार राजा दक्ष ने नारद को श्राप दिया था कि आप दो घड़ी से अधिक एक जगह कभी नहीं ठहर पाओगे। जिसके चलते वो रुक नहीं पाते थे। तब कानपुर देहात के तहसील रसूलाबाद में लगने वाला गाँव नार खुर्द व नार खास के बीचोबीच में नारद जी ने अपनी कुटिया बनाई थी। कुटिया के ठीक सामने एक नदी बहती है, जो नारद गंगा व तमसा नदी के रूप में पूर्व में जानी जाती थी, लेकिन वर्तमान में लोग उसे अब रिन्द नदी के नाम से जानते हैं।
नदी की खास विशेषता उस नदी की एक खास विशेषता यह है कि जितना नारद आश्रम के कुटिया का क्षेत्र है, वहाँ तक उत्तर दिशा को बहती है और परिक्षेत्र खत्म होते ही पूर्व दिशा को बहने लगीं। विद्वानों का मत है, जो नदी किसी आश्रम में ऊतर दिशा को बहती है तो वह देव तुल्य हो जाती है। इसीलिए इसे नारद गंगा भी कहते हैं। इस देव स्थान पर पूरे वर्ष श्रद्धालु उमड़ते हैं।
नारद जी ने यहीं दिया था उपदेश बताते हैं राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव को जब सौतेली माता रुचि ने पिता की गोद से हाँथ पकड़कर निकाल दिया था और कहा था कि इतना ही शौक है तो मरकर हमारी कोख से जन्म लो, तब तुम्हारा अधिकार होगा। ध्रुव ने सारी बात अपनी माता सुनीति को बताई तो माता को बहुत दुख हुआ। पाँच वर्ष की अवस्था में तप करने के लिए ध्रुव भी इसी स्थान पर आए, जहॉ पर नारद जी मिले और सार व्रतांत बताया। नारद जी ने ॐ नमो भगवते वासुदेवः नमः का मंत्र देकर भगवत दर्शन कराए थे। इस देवस्थान पर रसूलाबाद से 7 किमी दक्षिण में बस या निजी वाहन से पहुंच सकते हैं। झींझक से 8 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।