प्रबंधन की लापरवाही के चलते शासन को कभी भी वेंटीलेटर की मरम्मत का प्रस्ताव नहीं भेजा गया। जिसके चलते धीरे-धीरे करके सावे वेंटीलेटर कबाड़ हो गए। बाद में संबंधित कंपनी को मरम्मत के लिए दो वेंटीलेटर दिए गए। समय रहते अगर खराब वेंटीलेटरों की मरम्मत करा ली जाती तो यह सुविधा बंद नहीं होती।
अस्पताल की आईसीयू में 100 फीसदी बेड फुल चल रहे थे। मेडिसिन के मरीजों जिनमें हार्ट और सांस के रोगियों को खासा लाभ मिल रहा है। डफरिन की हाई रिस्क प्रेगनेंसी महिलाओं को भी इमरजेंसी में राहत मिल जाती थी। कानपुर ग्रामीण क्षेत्र और उन्नाव के मरीजों को खासा लाभ मिल रहा था। 24 घंटे आईसीयू में विशेषज्ञ डॉक्टरों की ड्यूटी लग रही थी। धीरे-धीरे वेंटीलेटर खराब हुए, मॉनीटर, सक्शन लाइन और दूसरे उपकरण भी खराब हो गए। अस्पताल में बजट का संकट पैदा हो गया। अधिकारियों के मुताबिक अस्पताल के अन्य मदों के नियमित बजट से मरम्मत का काम हो रहा था। मगर इस बार बजट की कमी से निर्माण कार्य संभव नहीं हो पाया।
उर्सला अस्पताल के कई विभाग शासन में पंजीकृत ही नहीं हैं। यहंा का बर्न वार्ड, ४५ बेड का मल्टी स्पेशिएलटी और एनएससी ब्लाक भी गैर पंजीकृत है। इन्हीं गैर पंजीकृत विभागों में मरीजों का इलाज होता है। इन्हेंं पंजीकृत कराने के लिए २०१२ से अब तक सात बार प्रस्ताव भेजा जा चुका है। शासन की नजर में उर्सला २१ साल पुरानी व्यवस्था के अनुसार ही चल रहा है।