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कानपुर

केंद्र ने दिया दर्जा और सम्मान पर यूपी सरकार नहीं मानती इन्हेें शहीद

पहले सपा और अब भाजपा सरकार भी कर रही अनसुनी न कोई मदद मिल रही और न नौकरी, भटक रही पत्नी

कानपुरAug 15, 2019 / 03:24 pm

आलोक पाण्डेय

shaheed satyapal singh

केंद्र ने दिया दर्जा और सम्मान पर यूपी सरकार नहीं मानती इन्हेें शहीद

कानपुर। क्या शहादत का भी कोई मानक होता है? शायद नहीं। बार्डर पर देश के लिए लड़ते-लड़ते जान देने वाले शहीद कहलाते हैं और शहीद का सम्मान भी पाते हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो देशहित में ही प्राण न्यौछावर करते हैं और उन्हें भी शहीद का दर्जा दिया जाता है। पर सेना से रिटायर हुए कानपुर के सत्यप्रकाश ने बारूद डिपो को बचाने के लिए अपनी जान दे दी और सैनिक का फर्ज निभाया, पर प्रदेश सरकार उन्हें शहीद नहीं मान रही है। स्वतंत्रता दिवस पर देश के शहीदों को याद किया जा रहा है तो सत्यप्रकाश की चर्चा होना जरूरी है।
महाराष्ट्र में हुए थे शहीद
कानपुर के श्यामनगर निवासी सत्यप्रकाश सिंह सेना से रिटायर होने के बाद महाराष्ट्र के पुलगांव में एशिया की सबसे बड़ी बारूद डिपो की सुरक्षा में तैनात थे। ३१ मई २०१६ को बारूद डिपो में आग लग गई। आग से बारूद डिपो को बचाने के लिए सत्यप्रकाश ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की और एक सैनिक की तरह प्राणन्यौछावर करते हुए अपना फर्ज निभाया।
केंद्र सरकार ने माना था शहीद
सत्यप्रकाश के इस अदम्य साहस के लिए केंद्र सरकार ने उन्हें शहीद का दर्जा दिया। साथ ही रक्षा मंत्रालय की ओर से उन्हें गैलेंट्री अवार्ड दिया गया था। सत्यप्रकाश को मरणोपरांत सेना का मेडल भी मिला। उन्हें उस दौरान एक शहीद का सम्मान दिया गया।
यूपी सरकार ने किया इंकार
शहीद सत्यप्रकाश ङ्क्षसह की पत्नी गीता सिंह ने बताया कि वह सीएम रिसीव फंड मदद और मृतक आश्रित बेटे की नौकरी के लिए तीन बार मुख्यमंत्री से मिलने गईं, पर मुलाकात नहीं हो सकी। पहले सपा और अब भाजपा की सरकार ने भी उनके पति को शहीद मानने से इंकार कर दिया।
हरियाणा सरकार ने दिया शहीद का दर्जा
शहीद सत्यप्रकाश के साथ ही हरियाणा के रण सिंह भी उसी दौरान शहीद हो गए थे। उन्हें भी केंद्र सरकार ने शहीद का दर्जा दिया था और हरियाणा सरकार ने केंद्र के फैसले का सम्मान करते हुए रण सिंह को शहीद मानकर हर सहायता उपलब्ध कराई। इतना ही नहीं मृतक आश्रित को नौकरी दिलाने की प्रक्रिया भी चली पड़ी है। पर उत्तरप्रदेश में शहीद की उपेक्षा अभी भी हो रही है।

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