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कानपुर

1978 में जब फूलबाग के मैदान पर दहाड़ी थीं इंदिरा, पब्लिक ने थामा हाथ का पंजा

बलिदान दिवस पर विशेष : फूलबाग ग्राउंड में इतनी भीड़ जुटी थी कि लोग पेड़ों पर चढ़कर इंदिरा गांधी को सुन रहे थे

कानपुरOct 31, 2017 / 12:56 pm

Hariom Dwivedi

indira gandhi
कानपुर. आर्थिक, धार्मिक, स्वतंत्रता आंदोलन के साथ ही राजनीतिक नगरी के रूप में पहचाने जाने वाला शहर जब भी बोला तो बदलाव पूरे देश में दिखा। आपाताकाल के बाद कांग्रेस की हालत बहुत खराब थी। इसी दौरान कांग्रेस के नेताओं ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव का आगाज कानपुर से करने को कहा। 19 सितंबर 1978 को इंदिरा गांधी ने फूलबाग में रैली की थी। फूलबाग ग्राउंड में हुई रैली में इतनी भीड़ जुटी थी कि लोग पेड़ों पर चढ़कर इंदिरा को सुन रहे थे। इस रैली का ही असर था कि पूरे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए जोरदार माहौल बना और 1980 में कांग्रेस दोबारा सरकार में लौटी। इसके बाद लंबे वक्त तक सियासत खामोश रही। कांगेसी के बुजुर्ग नेता हरकिशन श्रीवास्तव बताते हैं कि उस दिन इंदिरा एक शेरनी की तरह दहाड़ीं। इंदिरा ने कहा था कि विपक्षी नेता अमेरिका के इशारे पर काम कर रहे हैं और सरकार से आएदिन कोई न कोई मांग कर रहे हैं। इसी के चलते उनको ठिकाने के लिए हमने आपातकाल लगाया।

39 साल पहले कानपुर में की भी सभा
आपातकाल के बाद पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा चरम पर था। औद्योगिक राजधानी कानपुर में मजदूर गोलमंद थे और वो वामदलों के साथ खड़े थे। कांग्रेसी नेताओं ने अपनी खोई जमीन को पाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से चुनावी रैली का आगात कानपुर से करने को कहा। इंदिरा गांधी ने भी उनकी बात सुनकर फूलबाग की रैली में शामिल होने की रजामंदी दे दी। हरिकिशन श्रीवास्तव बताते हैं कि कानपुर उस समय सत्ता का केंद्र हुआ करता था। यहीं से देशभर के मजदूर संगठनों को संचालित किया जा रहा था। कांग्रेसियों ने फूलबाग की रैली को एतिहासिक बनाने के लिए मजदूरों के अंदर पैठ बनाई। इंदिरा गांधी लखनऊ के रास्ते 19 सितंबर 1978 को शहर पहुंची। फूलबाग के मैदान पर पैर रखने तक की जगह नहीं थी। लोग इंदिरा को सुनने के लिए पेड़ों की टहनियों में चढ़े थे। इंदिरा गांधी ने गंगा के किनारे से चुनाव जिताने की अपील की और 1980 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आ गई।
इसलिए लगाया था आपातकाल
हरिकिशन बताते हैं कि उस वक्त विरोधी दलों के नेता इंदिरा को घेरने के लिए आएदिन कोई न कोई मांग लेकर आंदोलन शुरू कर देते थे। जिसके चलते पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है। गुजरात और बिहार की विधानसभाएं भंग की जा चुकी थीं। बावजूद े विपक्ष की मांगों का कोई अंत ही नहीं हो रहा तो इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। बताते हैं, इंदिरा गांधी ने कानपुर की रैली के दोरान कहा था कि वो अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और उन्हें डर है कि कहीं उनकी सरकार का भी सीआईए की मदद से चिली के राष्ट्रपति सालवडोर अयेंदे की तरह तख़ता न पलट दिया जाए। इंदिरा गांधी ने इन्हीं के चलते आपातकाल की घोषण की।
चाय के साथ जलेबी का किया था नाश्ता
हरिकिशन बताते हैं कि रैली के पहले इंदिरा गांधी ने कुल्हड़वाली चाय पी और फिर जलेबी और अचार के साथ मठरी खाने की इच्छा जाहिर की। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने मोतीझील से चाय लेकर के साथ ही आर्यनगर से देसी घी से तैयार गर्म जलेबी, मठरी और अचार लेकर आए। इंदिरा ने कानपुर का नाश्ता करके काफी खुश हुई। इंदिरा गांधी को इस बात का एहसास था कि अगर कानपुर के लोग और मजदूर उनके साथ खड़े हो गए तो चुनाव जीतना तय हैं। हरिकिशन बताते हैं कानपुर में का उस जमाने में मजूदरों का बोलबाला रहा है। यह शहर प्रदेश के बिलकुल बीच में होने के कारण यहां दिया गया मेसेज पूरे प्रदेश में आसानी से पहुंचता था। यहां से हर पार्टी को एक किस्म की एनर्जी मिलती है। अगर यहां कोई रैली या सभा कामयाब होती है, तो पार्टी अपने आने वाले दिनों का अनुमान आसानी से लगा लेती थी।

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