इस श्राद्ध और तर्पण में उन्हीं महिलाओं और लड़कियों ने भाग लिया, जिनके घर परिवार में श्राद्ध करने के लिए कोई भी पुरुष नहीं है। महिलाओं और लड़कियों ने पूरी वैदिक रीति रिवाज और हिन्दू कर्मकांड विधान के मुताबिक़ अपने पूर्वजों और परिवारीजनों को पिंड अर्पित किया और स्नान अर्घ्य आदि देकर उनकी आत्माओं की शान्ति और मुक्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। बाद में श्राद्ध करके उन्हें उनका प्रिय भोग भी अर्पित किया।
महिलाओं का मानना है कि आज के पुरुष प्रधान समाज में नारी किसी भी रूप में पुरुषों से पीछे नहीं है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जिनके घर या परिवार में कोई पुरुष नहीं, उनके पुरखों या पूर्वजों को आखिर कौन पानी देगा? इसलिए ऐसी महिलाओं को आगे आकर अपने पूर्वजों और परिजनों का अपने हाथों से श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। युग दधीचि के आयोजकों का कहना है कि नारी और बेटी की महत्ता बताने के लिए संस्था हमेशा ऐसे कार्यक्रम करती रही है और आगे भी करती रहेगी।