अनुमति दिलाने का किया अनुरोध
यूपी के सीएम योगी अदित्यनाथ ने यूपी के किसानों के लिए कृत्रिम बारिश कराए जाने की जिम्मेदारी आईआईटी कानपुर को सौंपी थी। सीएम के आदेश के बाद संस्थान के वैज्ञानिक इस पर जुट गए और एक नई तकनीकि का अविष्कार किया है। इसी का ट्रायल लखनऊ में किया जाना है। उद्यन मंत्रायल की शर्तो के अनुसार संस्थान ने एक करोड़ पच्चीस लाख रूपए से अपने वायुयान में बदलाव किए हैं। अब मंत्रायल से हरी झंडी मिलते ही आईआईटी के वैज्ञनिक इसका ट्रायल कर किसानों को यह सौगात सौंप देंगे। आईआईटी के एक प्रोफेसर ने बताया कि पत्र सीएम को भेजा जा चुका है और जल्द ही मंत्रायल की तरफ से हमें अनुमति मिल जाएगी और 2019 में किसानों की फसलें सूखें से खराब नहीं होंगी।
चीन के बजाए आईआईटी को सौंपा काम
इस तकनीक को विकसित करने के लिए पहले योगी सरकार ले चीन से बातचीत की थी, जिसपर 10 करोड़ रुपये की लागत आनी थी। बाद में चीन ने मना कर दिया तो आइआइटी कानपुर से तकनीक ईजाद कराई गई है। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ के बुलावे पर आईआईटी की एक टीम लखनऊ गई और कृत्रिम वर्षा के लिए उपकरण तैयार करने के लिए अपनी सहमति दी थी। इस प्रोजेक्ट पर पिछले साल से कार्य चल रहा था। सरकार ने भी संस्थान को पैसे उपलब्ध कराए थे। आईआईटी के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के बल पर कृत्रिम वर्षा का औजार तैयार हो पाया है। पहले चरण में इसका इस्तेमाल बुंदेलखंड के सात जिलों में किया जाएगा।
कृत्रिम वर्षा क्या है?
सीएसए के रिटायर्ड वैज्ञानिक अनुरूद्ध दुबे बताया कि कृत्रिम वर्षा मानव निर्मित गतिविधियों के माध्यम से बादलों को बनाने और फिर उनसे वर्षा कराने की क्रिया को कहते हैं. कृत्रिम वर्षा को क्लाउड-सीडिंग भी कहा जाता है। क्लाउड-सीडिंग का पहला प्रदर्शन जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, ऑस्ट्रेलिया में किया गया था। डॉक्टर दुबे ने बताया कि हवा के जरिये क्लाउड-सीडिंग करने के लिए आम तौर पर विमान की मदद ली जाती है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल उच्च दाब पर भरा होता है. लक्षित क्षेत्र में विमान हवा की उल्टी दिशा में चलाया जाता है ताकि घोल ज्यादा क्षेत्र में फैले. विमान के वांछित बादल के पास पहुँचते ही बर्नर चालू कर दिये जाते हैं। जिस क्षेत्र में बारिश की जानी है, वहां राडार पर बादल दिखाई देने पर विमानों को सीडिंग के लिए भेजा जाता है, ताकि हवाओं के कारण बादल आगे न बढ़ जायें।
तीन चरणों में कराई जाती है वर्षा
सीएसए के रिटायर्ड वैज्ञानिक अनुरूद्ध दुबे ने बताया कि कृत्रिम वर्षा तीन चरणों में पूरी की जाती है। पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके वांछित इलाक़े के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ़ भेजा जाता है जिससे वे वर्षा के बादल बना सकें। इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है। ये यौगिक हवा से जल वाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। दूसरे चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ़ और कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग करके बढ़ाया जाता है। तीसरे चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिडकाव किया जाता है, इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और सम्पूर्ण बादल बर्फीले स्वरुप ंबदल जाते हैं।