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करौली

आयुर्वेद चिकित्सा :औषधालयों में औषधियों का टोटा

Ayurvedic treatment: Tota of Medicines in Dispensariesरोगियों को मिल रही अधूरी दवाएं, बाजार से खरीदने की मजूबरी

करौलीAug 14, 2020 / 09:46 am

Anil dattatrey

आयुर्वेद चिकित्सा :औषधालयों में औषधियों का टोटा

आयुर्वेद चिकित्सा :औषधालयों में औषधियों का टोटा


हिण्डौनसिटी. हर्बल के नाम से विदेशों में परवान चढ़ रही आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति स्वदेश में औषधियों के अभाव में बीमार है। औषधालयों में उपचार के लिए जरुरत की दवाएं उपलब्ध नहीं है। आयुर्वेद औषधालयों से रोगियों को आधी-अधूरी दवाएं ही मिल रही हैंं। करौली जिले के आयुर्वेद औषधालयों में रसायन शालाओं से हो ही औषधियों की आपूर्ति रोगियोंं की आवक की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहींं।

देश की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के बढ़ावे के लिए सरकार भले ही दावे कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि औषधालयों में दवाओं का टोटा रहता है। ऐसे में मरीज बाजार से महंगी दवा खरीदने के बजाय मुफ्त में मिल रही एलोपैथी की दवाओं से उपचार कराना बेहतर समझते हैं।
आयुर्वेद विभाग के चिकित्सकों ने अनुसार शहर से लेकर गांव तक के आयुर्वेद औषधालयों में वर्ष भर दवाओं की तंगी रहती है। विभागीय स्तर पर रसायनशाला से वर्ष में दो बार करीब 20 हजार रुपए की कीमत की दवाओं की आपूर्ति होती है। जिसमें जरुरत की सभी औषधियों के बजाय चुनिंदा चूरण, क्वाथ व वटियों की आपूर्ति होती है। काफी कम मात्रा में होने से दवाओं को एक-दूसरी औषधियों का योग चंद दिन ही चल पाता है। स्थिति यह है कि जितनी दवाएं औषधालयों को भेजी जाती है, उनसे तो एक-दो माह का ही काम चल पाता है।
रोगी बाहर से खरीद रहे दवा-
जिले के आयुर्वेद औषधालयों में बुखार, जुकाम, पेटदर्द,कब्ज के रोगियों की अधिक आवक रहती है। लेकिन इनसे संबंधित औधालय में इनसे संबंधित औषधियां ही नहीं हैं। औषधालयों में जिस बीमारी की दवा खत्म हो जाती है, वह दोबारा छहमाही आपूर्ति में ही मिल पाती है। ऐसे में रोगियों का औषध भंडार गृह में उपलब्ध दवाओं से ही नुसखा तैयार किया जाता है। औषध योग अधूरा रहने पर रोगियों को दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती है।
चूरण-चटनी खत्म, 3 वर्ष से नहीं आया सितोपलादि-
जिले के औषधालयों में अधिकांश चूर्ण-चटनी खत्म हो गए हैं। हिण्डौन में एक छत के नीचे आयुर्वेद चिकित्सालय में तीन वर्ष से सीतोपलादि चूर्ण की आपूर्ति नहीं है। वहीं त्रिफला, हिंगवष्टक, अविपित्तकर, लवण भास्कर, अग्निसंदीपन, पंचसकार चूर्ण के डिब्बे रीते पड़े हैं। वहीं बुखार व जुकाम की औषधि गौ जिव्हादि क्वाथ भी नहीं हैं।
बिना मांग पत्र भेजते दवाएं-
विभागीय सूत्रों के अनुसार आयुर्वेद रसायनशालों से मौके उपलब्ध औषधियोंं की ही औषधालयों को सप्लाई दी जाती है। औषधालयों से जरुरत की मांग पत्र नहीं मांगा जाता है। ऐेसे में औषधालयों में वर्षभर अतिआवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती है।

इनका कहना है-
दवाओं का तय है बजट और आपूर्ति-
निदेशालय स्तर पर प्रदेश में औषधालयों के लिए औषधियों का बजट व आपूर्ति का समय निर्धारत है। रसायनशाला से वर्ष में बाद औषधालय वाइज उपलब्ध दवाओं की आपूर्ति मिलती है। मांग पत्र नहीं लेने से कई औषधियोंं के नहीं आने से टोटा बना रहता है।
– सुनीत कुमार जैन
उपनिदेशक, आयुर्वेद विभाग, करौली
एक्सपर्ट-व्यू-

जिला स्तपर पर खुले औषधि डिपो-
एलोपैथी की नि:शुल्क दवा योजना की भांति जिला स्तर पर आयुर्वेद औषधीय भण्डार स्थापित होने चाहिए। ताकि दवाओं की सप्लाई व्यवस्था में सुधार हो सके। रसायन शालाओं से जिला स्तर पर दवाओं का भण्डारण होगा तो दवाएं खत्म होने पर त्वरित आपूर्ति की जा सकेगी। साथ ही वर्ष में महज दो बार ही दवाओ की आपूर्ति की व्यवस्था में बदलाव कर औषधालयों में जरुरत के मुताबिक नियमिति सप्लाई होने चाहिए। ऐलोपैथी की नि:शुल्क दवा योजना की भांति औषधालयों में स्तर अनुसार दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। वही दवाओं की आपूर्ति औषधालयों से मांग पत्र के अनुसार तय की जाए। जिससे औषधालयों में अतिआवश्यक, जरुरी व सामान्य श्रेणी में विभक्त कर दवाएं उपलब्ध हो सके। वर्ष भर सभी प्रकार की औषधियों की उपलब्धता रहेगी, तो रोगियों को समुचित उपचार मिल सकेगा।
-डॉ.घनश्याम शर्मा
पूर्व अतिरिक्त निदेशक, आयुर्वेद विभाग, करौली
फैक्ट फाइल
जिले के कुल आयुर्वेद औषधालय —79

करौली ——————————14
हिण्डौन —————————-13
टोडाभीम—————————17
नादौती—————————–16
मण्डरायल—- ———————-5
सपोटरा- —————————9
एक छत के नीचे——————–2
चल चिकित्सा इकाई—————-1
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सालय—–1
जिला आयुर्वेद चिकित्सालय———-1

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