scriptकोविड संक्रमण में अधिग्रहित शव वाहन “गायब” | Carcass acquired in Kovid infection "missing" | Patrika News
करौली

कोविड संक्रमण में अधिग्रहित शव वाहन “गायब”

कोविड संक्रमण में अधिग्रहित शव वाहन “गायब”
23 दिन पहले अधिग्रहण से किया मुक्त,
समिति कर रही वापसी का इंतजार, सरकारी तंत्र की गैरजिम्मेदारी की बानगी
करौली। कोविड संक्रमण के दूसरे दौर में जिला प्रशासन द्वारा अधिग्रहित शव वाहन “गायब” हुआ है। अब इस वाहन की जिम्मेदारी लेने कोई अफसर तैयार ही नहीं है। मामले में सरकारी तंत्र की बेपरवाही की बानगी सामने आती है। प्रशासन ने इस वाहन को 23 दिन पहले अधिग्रहण से मुक्त कर नगरपरिषद को आदेश दिए लेकिन वाहन संचालन करने वाली समिति तक ये वाहन अभी नहीं पहुंचा है।

करौलीJul 11, 2021 / 08:36 pm

Surendra

कोविड संक्रमण में अधिग्रहित शव वाहन

कोविड संक्रमण में अधिग्रहित शव वाहन

कोविड संक्रमण में अधिग्रहित शव वाहन “गायब”

23 दिन पहले अधिग्रहण से किया मुक्त, समिति कर रही वापसी का इंतजार
सरकारी तंत्र की गैरजिम्मेदारी की बानगी

करौली। कोविड संक्रमण काल के दूसरे दौर में जिला प्रशासन द्वारा अधिग्रहित किया गया शव वाहन “गायब” हुआ है। अब इस वाहन की जिम्मेदारी लेने को कोई अफसर तैयार ही नहीं है। इस मामले में सरकारी तंत्र की बेपरवाही की बानगी भी सामने आती है। प्रशासन ने तो इस वाहन को 23 दिन पहले अधिग्रहण से मुक्त करते हुए नगरपरिषद को आदेश दे दिए लेकिन वाहन का संचालन करने वाली समिति तक ये वाहन अभी तक नहीं पहुंचा है। खास बात तो यह है कि नगरपरिषद आयुक्त भी इस वाहन को अपने यहां से भेजना बता रहे हैं।
करौली में शहर बाहर की कॉलोनियों, बस्तियों से शवों को मोक्षधाम तक लाने में दूरी की समस्या को देखते हुए अग्रवाल वरिष्ठ नागरिक सेवा समिति ने शव वाहन की व्यवस्था तीन वर्ष पहले की थी। तभी से समिति द्वारा इस वाहन का नि:शुल्क संचालन किया जाता रहा है।
कोविड संक्रमण के दूसरे दौर में जब कोरोना से मृत्यु अधिक हो रही थी, तब शवों को मोक्षधाम पहुंचाने के लिए जिला कलक्टर ने 24 अप्रेल को आदेश जारी करके समिति से इसका अधिग्रहण कर लिया था। इसके संचालन की जिम्मेदारी नगरपरिषद को सौंपी गई। हालांकि सूत्रों का कहना है कि बीते दो माह में नगरपरिषद प्रशासन ने इसका कोई खास उपयोग नहीं किया। किसी न किसी कारण से ये वाहन ज्यादातर समय चिकित्सालय या नगरपरिषद परिसर में खड़ा रहा।
कोरोना संक्रमण का दौर खत्म होने पर 18 जून को उपखण्ड अधिकारी ने आदेश जारी करके इस वाहन को अधिग्रहण से मुक्त कर दिया। इस बारे में नगरपरिषद आयुक्त को आदेशित किया कि वे वाहन मालिक (समिति) को अधिग्रहण से मुक्त करने के आदेश की तामील कराकर वाहन को उनके सुपुर्द करें।
इस आदेश का खुलासा तब हुआ जब वाहन को अधिग्रहण से मुक्त करने के बारे में जिला कलक्टर से आग्रह किया गया। कलक्टर ने उपखण्ड अधिकारी को वाहन को अधिग्रहण मुक्त करने के लिए आदेशित किया तो उन्होंने कलक्टर को अवगत कराया कि कि इस बारे में तो 18 जून को ही आदेश जारी किए जा चुके हैं।
नगरपरिषद की लापरवाही का आलम देखिए कि 23 दिन बाद भी न तो उपखण्ड अधिकारी के आदेश की सम्बन्धित समिति को तामील कराई गई है और न शव वाहन को सुपुर्द किया गया है। इतना ही नहीं वाहन को सौंपे जाने को लेकर उपखण्ड अधिकारी ने कम से कम पांच बार नगरपरिषद आयुक्त को फोन भी किए हैं। हैरत तो यह है कि नगरपरिषद आयुक्त नरसी लाल मीणा ने पत्रिका को बताया कि वे परिषद से एक सप्ताह पहले ही शव वाहन को मालिक के यहां भेज चुके हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि नगरपरिषद ने वाहन भेज दिया और अग्रवाल वरिष्ठ नागरिक सेवा समिति के पास वाहन पहुंचा नहीं तो वाहन किधर गायब हुआ। इस बारे में अफसरों के पास जवाब नहीं है। उपखण्ड अधिकारी कहते हैं कि नगरपरिषद में सम्पर्क कीजिए। नगरपरिषद में इस वाहन की जिम्मेदारी स्वीकारने वाला कोई नहीं।
ऐसी गैरजिम्मेदारी में कैसे करें सहयोग

राज्य सरकार तथा जिला प्रशासन के अधिकारी जनसहयोग करने को आगे आने की बार-बार अपील करते हैं। लेकिन शव वाहन के मामले में गैरजिम्मेदारी की जैसी बानगी सामने आ रही है, उससे सरकारी तंत्र की लापरवाही जाहिर होती है। ऐसे में कोई संस्था, व्यक्ति सहयोग देने से कतराता है। एक वरिष्ठ नागरिक ने बताया कि उनकी मंशा शहर के मरीजों को लाने ले जाने के लिए नि:शुल्क एम्बुलेंस संचालन की है लेकिन सरकारी तंत्र की ऐसी गैरजिम्मेदारी के कारण यह निर्णय नहीं कर पा रहे हैं।

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