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करौली

विकास के मिशन में इनका भी तो करो जतन

करौली. इसी तरह रोडवेज डिपो का भी मामला है। करौली का दुर्भाग्य रहा कि पिछले कांग्रेस शासन में यहां खोले गए डिपो को भाजपा सरकार ने घाटे का सौदा बताकर बंद कर डाला। भाजपा शासन में कांग्रेस के नेता कहते रहे कि कांग्रेस शासन आने पर हम डिपो को वापस शुरू कराएंगे। अब इसे लेकर उनकी खामोशी है।

करौलीOct 01, 2019 / 12:30 pm

Surendra

विकास के मिशन में इनका भी तो करो जतन

विकास के मिशन में इनका भी तो करो जतन

करौली में मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति न केवल खुशी की सौगात है बल्कि इस गौरवमयी उपलब्धि से करौली निश्चित विकास के पथ पर आगे भी बढ़ेगा। करौलीवासियों के लिएखुशी की बात यह भी कि इस उपलब्धि का श्रेय अनेक जनप्रतिनिधि ले रहे हैं। इसमें प्रयास किसके रहे और श्रेय का सेहरा किसके माथे पर बांधा जाए, यह जनता बेहतर जानती-समझती है। लेकिन इ दावों से यह जरूर जाहिर होता है कि सभी जनप्रतिनिधि करौली के विकास के प्रति चिंतित और समस्याओं का समाधान कराने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब इन जनप्रतिनिधि को उन सौगातों को वापस लाने के भी जतन करने चाहिए, जो हमारी झोली में आने के बाद किन्ही कारणों से हमसे दूर हैं।
भाजपा सरकार ने छह वर्ष पहले करौली के लिए इंजनीयरिंग कॉलेज की सौगात दी लेकिन बिडम्वनापूर्ण स्थिति रही कि इसके के लिए न भवन मिला न स्थायी निर्माण के भूमि आवंटित हो पाई। दो वर्ष तक तो यह कॉलेज यूं ही फाइलों में बंद रहा।
वर्ष २०१७ से इसको करौली के नाम से भरतपुर में संचालित किया जाने लगा। ऐसी स्थिति डिप्लोमा कॉलेज की है जो अलवर में चल रहा है। वर्षो गुजरने पर भी इंजनीयरिंग और डिप्लोमा कॉलेज को भूमि-भवन नहीं मिलना जाहिर करता है कि जिला प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों ने इस सौगात को गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने प्रशासन के साथ मिलकर भूमि-भवन के आवंटन के प्रयास नहीं किए जिसके कारण इनके करौली से दूर संचालित होने की नौबत आई।
अब जरूरत है कि जैसे मेडिकल कॉलेज के लिए आनन-फानन में भूमि की तलाश और आवंटन की कार्रवाई हुई, इसी प्रकार इन दोनों कॉलेज के लिए भूमि-भवन की तलाश करके इनका संचालन करौली में होने लगे। इसमें कोई ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी है। करौली के नाम से दोनों कॉलेज संचालित हैं ही, केवल प्रशासन की मदद से भूमि-भवन की तलाश ही तो करनी है।
हैरत की बात रही कि तीन दिन पहले दोनों कॉलेजों यानी तकनीकी शिक्षा के स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री सुभाष गर्ग करौली आए लेकिन किसी ने उनसे इन कॉलेजों का संचालन करौली में करने की मांग नहीं उठाई। बातें और दावे मेडिकल कॉलेज की हुई। इन कॉलेजों को भुला दिया गया। ये तो ऐसे हुआ मानों घर बैठे गंगा आई और हम उसमें स्नान करना भी भूल गए। मंत्री से इस मामले में चर्चा इसलिए जरूरी है कि उन्होंने पिछले दिनों करौली के इंजनीयरिंग कॉलेज को बंद करने के संकेत दिए थे। उनसे आग्रह करना जरूरी है कि हमारा कॉलेज बंद करने की बजाय हमारे यहां संचालित करने के लिए वे कार्रवाई करें। यहां यह चर्चा करना भूल गए तो कोई बात नहीं, क्षेत्र के विकास के लिए चिंतित और सक्रिय जनप्रतिनिधियों को अब इस बारे में जतन करने चाहिए।
इसी तरह रोडवेज डिपो का भी मामला है। करौली का दुर्भाग्य रहा कि पिछले कांग्रेस शासन में यहां खोले गए डिपो को भाजपा सरकार ने घाटे का सौदा बताकर बंद कर डाला। भाजपा शासन में कांग्रेस के नेता कहते रहे कि कांग्रेस शासन आने पर हम डिपो को वापस शुरू कराएंगे। अब इसे लेकर उनकी खामोशी है।
करौली के विकास से जुड़े ऐसे मसलों पर राजनीतिक दांव-पेच और तमगा लेने की लालसा नहीं रखी जाए तो बेहतर है। बल्कि सर्वदलीय समिति बनाकर प्रयास होने चाहिए। क्षेत्र के विकासवादी सोच की भावना से ही करौली के विकास की यात्रा आगे बढ़ेगी।

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