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करौली

राजस्थान के इस जिले में रेंगती जांच में सिसक रही हैं जिंदगी

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करौलीNov 02, 2018 / 04:44 pm

Dinesh sharma

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राजस्थान के इस जिले में रेंगती जांच में सिसक रही हैं जिंदगी

दिनेश शर्मा
करौली. सरकार सिलिकोसिस के मरीजों की जांच व उपचार के प्रति बेपरवाह बनी हुई है जिसके कारण इस जानलेवा बीमारी से पीडि़त अनेक मरीज उपचार से पहले ही दम तोड़ रहे हैं।

असल में इस बीमारी की जांच और उपचार की प्रक्रिया को इतना जटिल बनाया हुआ है जिसके कारण सिलिकोसिस पीडि़त के लिए उपचार सहज- सुलभ उपलब्ध नहीं हो पाता है।
अपने परिवार का पेट भरने के लिए करौली-सपोटरा इलाके में सैण्ड स्टोन तथा सिलिका की खदानों पर काम करने वाले हजारों मजदूर सिलिकोसिस की चपेट में आ रहे हैं।

बताया जाता है कि खदानों पर उडऩे वाली धूल के श्वांस के साथ अंदर जाने से पत्थर के कण फेफड़ों में जमा होते हैं, जिससे सिलिकोसिस की बीमारी उनको घेर लेती है। ऐसे मजदूरों की संख्या हजारों में है। तीन माह से सिलिकोसिस के संभावित मरीजों की जांच के लिए पंजीयन ऑन लाइन किए जाने लगे हैं। इस अवधि में 1900 मरीजों ने अपनी जांच के लिए पंजीयन कराया है।
गौरतलब है कि सिलिकोसिस बीमारी का सत्यापन चिकित्सकों के बोर्ड द्वारा किया जाता है जिसकी प्रति सप्ताह में एक बार बैठक होती है। एक सप्ताह में 15 से 20 मरीजों की जांच बोर्ड कर पाता है। महीने में 75-80 मरीजों की जांच हो पाती है।
ऐसे में मरीजों की जांच की गति तो धीमी है जबकि संभावित मरीजों के पंजीयन की संख्या लगातार बढ़ रही है। नतीजतन सिलिकोसिस की गंभीर बीमारी की जकड़ में आ रहे पत्थर श्रमिकों की जांच में देरी का सिलसिला चल रहा है।
जांच में देरी के कारण सिलिकोसिस मरीज का उपचार देरी से शुरू हो पाता है और इस बीच में अनेक मरीजों की मौत भी हो जाती है। इस स्थिति के बावजूद सिलिकोसिस मरीजों के जांच कार्य में तेजी लाने को लेकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग गंभीर नहीं है अभी हाल ही में ऐसे दो जनों की मृत्यु हुई है जिनको सामान्य चिकित्सालयों के चिकित्सक ने सिलिकोसिस की आशंका जताते हुए जांच के लिए बोर्ड को रैफर किया।
बोर्ड से जांच करने का नम्बर आता उससे पहले उनकी मौत हो गई।
गौरतलब है कि सिलिकोसिस के बोर्ड द्वारा प्रमाणित किएजाने पर मरीज को एक लाख नकद दिया जाता है और मृत्यु होने पर परिजन को 3 लाख की सहायता मिलती है। इस सबके बावजूद ना चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग गंभीर है और ना ही जिला प्रशासन के अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहे। पूर्व में सिलिकोसिस की चपेट में आकर जिले में कई श्रमिक मौत के मुंह में समा चुके हैं।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की जांच में देरी का नमूना है कि गत दिनों ही एक श्रमिक की मौत हुई, जिसे सिलिकोसिस की आशंका जताई गई थी, लेकिन उसकी जांच नहीं हो सकी। विशेष बात यह है कि चिकित्सा विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी इसके लिए सीएचसी स्तर से जांच रिपोर्ट में देरी होने की बात कह पल्ला झाड़ लेते हैं।
प्रमाण पत्रों की ऐसी है धीमी चाल
सूत्र बताते हैं कि अगस्त माह से ऑनलाइन पंजीयन शुरू हुआ, जिसके तहत अब तक 1918 जनों ने पंजीयन कराया है। जबकि पिछले ऑफलाइन के पंजीयन सहित अब तक महज 40 जनों को ही प्रमाण पत्र मिल सके हैं।
इन इलाकों में होता है खनन
जिले के लांगरा, मासलपुर, कुडग़ांव, हिण्डौन, मण्डरायल आदि इलाकों में विशेष रूप से खनन कार्य होता है। इन पत्थर खदानों पर हजारों श्रमिक कार्य करते हैं, लेकिन खदानों में श्रमिकों की सुरक्षा की अनदेखी ही की जाती है।
न तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में मास्क मिल पाते हैं और ना हीं उन्हें सुरक्षित कार्य करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे में कार्य के दौरान पत्थरों से निकलने वाले डस्ट (धूल) उनके शरीर में अन्दर जमा होती रहती है, जिससे वे रोग की चपेट में आ जाते हैं।
दो दिन के लिए प्रक्रिया चल रही है
सप्ताह में एक दिन मेडिकल बोर्ड बैठता है। यह सही है कि पंजीयन कराने वालों की संख्या अधिक है। इससे जांच- प्रमाण पत्र में देरी तो होती है। सप्ताह में दो दिन मेडिकल बोर्ड द्वारा जांच-प्रमाण पत्र के लिए प्रक्रिया की जा रही है।
डॉ. जगमोहन मीना, जिला क्षय रोग अधिकारी, करौली

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