बुजुर्गों के अनुसार हिण्डौन में होली पर धुलण्डी के दिन धमाल निकालने की परम्परा करीब चार सौ वर्ष पहले शुरू हुई थी। ढोल-नंगाड़ों के बीच हथियार व लाठी थामे लोगों द्वारा एक-दूसरे को गुलाल लगाना और गायन के माध्यम से प्रेम दिखाना धमाल का अनूठा अंदाज है।
नहीं बदला सदियों पुराना रास्ता
चार सदी पुरानी धमाल आज भी रियासत काल में तय किए रास्ते से निकलती है। रास्ता अतिक्रमण से भले ही रास्ता संकरा हो गया है, लेकिन युवा बुजुर्गों की राह को अपनाए हुए हैं। धाकड़पोठा स्थित समाज की अथाईं से दोपहर बाद धमाल शुरू होकर मोती डाक्टर की गली, भांडियापोठा, खारीनाले की पुलिया से निकल खटीकपाड़ा पहुंचती है। जहां खटीक समाज के लोग धमालियों का स्वागत और खुद भी शामिल होने की परम्परा है। खटीक पाड़ा से धमाल दिलसुख की टाल, कोलियों की गली, सदर थाना, सांवतसिंह का मकान, भायलापुरा, सब्जी मण्डी होते हुए कटरा बाजार पहुंचती है। जहां धमाली ठड्डा गायन करते हैं। अथाईं पहुंचकर धमाल विसर्जित हो जाती है।