सभी के चेहरे पर एक अलग भाव-भंगिमा देखने को मिल रही है। शहर के चौक व गली-मोहल्लों में रात्रि में होरी व फाग गीतों का धमाल करते नजर आ रहे हैं। शहर में विभिन्न संघ-संस्थाओं व संगठनों की ओर से फाग व होरी गीतों के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
सजने लगी रंगों की दुकानें
होली का त्यौहार नजदीक आते ही शहर पर भी रंगों का खुमार चढऩे लगा है। बाजार में जगह-जगह गुलाल और पिचकारियों की दुकानें सज गई हैं। जिन पर खरीदारी के लिए भी लोगों की भीड़ उमड़ रही है। रंगों के त्यौहार होली को लेकर बाजार में रंगों की धूम अभी से दिख रही है। गुलाल और पिचकारियों की खरीद के लिए शहर ही नहीं, बल्कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग पहुंच रहे हैं। जगह-जगह होली के सामान की दुकानें सजनी शुरू हो गई हैं।
होली का त्यौहार नजदीक आते ही शहर पर भी रंगों का खुमार चढऩे लगा है। बाजार में जगह-जगह गुलाल और पिचकारियों की दुकानें सज गई हैं। जिन पर खरीदारी के लिए भी लोगों की भीड़ उमड़ रही है। रंगों के त्यौहार होली को लेकर बाजार में रंगों की धूम अभी से दिख रही है। गुलाल और पिचकारियों की खरीद के लिए शहर ही नहीं, बल्कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग पहुंच रहे हैं। जगह-जगह होली के सामान की दुकानें सजनी शुरू हो गई हैं।
आधुनिकता के रंग में रंगी होली
आधुनिकता की दौड़ में अब नागौर में वर्षों पुरानी होली वाला उत्साह और उमंग कहीं नजर नहीं आता। वर्षों पूर्व ऐतिहासिक होली मनाई जाती थी। बदलते परिवेश में रंगों के त्योहार का रंग फीका सा होने लगा है। ग्रामीण अंचल में भी अब होली की वो रंगत नजर नहीं आती जो एक दशक पहले थी। गांव के गुवाड़ में युवाओं की टोली का खेल व धोरों में चंग की थाप की गूंज सुनाई नहीं देती। बदलते समय के साथ पिचकारी व खिलौने भी बदल गए। अब होली का पर्व लोगों के लिए महज औपचारिकता बनता जा रहा है।
आधुनिकता की दौड़ में अब नागौर में वर्षों पुरानी होली वाला उत्साह और उमंग कहीं नजर नहीं आता। वर्षों पूर्व ऐतिहासिक होली मनाई जाती थी। बदलते परिवेश में रंगों के त्योहार का रंग फीका सा होने लगा है। ग्रामीण अंचल में भी अब होली की वो रंगत नजर नहीं आती जो एक दशक पहले थी। गांव के गुवाड़ में युवाओं की टोली का खेल व धोरों में चंग की थाप की गूंज सुनाई नहीं देती। बदलते समय के साथ पिचकारी व खिलौने भी बदल गए। अब होली का पर्व लोगों के लिए महज औपचारिकता बनता जा रहा है।