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करौली

काश! समय पर जाग जाएं

करौली. प्रशासन का हाल भी ऐसा है कि जब सिर पर आकर पड़ती है तब जागता और भागता है।

करौलीJul 28, 2019 / 07:51 pm

Dinesh sharma

karauli hindi news

काश! समय पर जाग जाएं

सुरेन्द्र चतुर्वेदी
करौली. प्रशासन का हाल भी ऐसा है कि जब सिर पर आकर पड़ती है तब जागता और भागता है। ऐसी नौबत तब आती है जब न्याय पालिका की फटकार लगती है या फिर बड़े अफसर हड़काते हैं।। वरना तो समस्या और मुद्दों को लेकर चीखते-चिल्लाते रहने पर भी प्रशासन की नींद नहीं खुलती। इन दिनों प्रशासन के अफसर कैलादेवी आस्थाधाम की कालीसिल नदी को लेकर संवेदनशील दिख रहे हैं। इस नदी को प्रदूषण रहित बनाने के प्रति उनकी संवेदनाएं यकायक नहीं जागी हैं, बल्कि एनजीटी (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण) की ओर से मिल रहीं फटकार से उनकी सक्रियता बढ़ी है।
उत्तरभारत के प्रसिद्ध कैलादेवी आस्थाधाम में कैलामाता के दर्शन से पहले वहां की कालीसिल नदी में स्नान करने की धार्मिक मान्यता है। चाहें कालीसिल में प्रदूषण बढ़ गया हो, फिर भी धार्मिक आस्था के चलते अभी भी यहां हजारों लोग स्नान करने के बाद ही माता के दर्शन करने जाते हैं। कुछ वर्षो से इस पवित्र नदी में लगातार गंदगी प्रवाहित हो रही है। आसपास में भी गंदगी का आलम है। नदी इतनी दूषित हुई है कि इसको देख रोना आता है।
नदी की यह दुर्दशा एक दिन में नहीं हुई। नदी किनारे बनी धर्मशालाओं और आवासों के शौचालयों के पाइप सीधे इस नदी में डाल दिए गए लेकिन किसी ने रोका-टोकी नहीं की। और तो और कस्बे की नालियों का गंदा पानी भी नदी की ओर मोड़ दिया गया तो भी किसी की तरफ से आपत्ति नहीं हुई। लोगों ने भी नहाने धोने और नित्य कर्म के जरिए से इसको गंदा करने में कसर नहीं छोड़ी।
धीरे-धीरे पवित्र नदी में प्रदूषण बढ़ता गया और अफसर आंखें मूंदे रहे। किसी ने जगाने की कोशिश भी की तो अनसुना कर फिर सो गए। खुद प्रशासन की लापरवाही अब नासूर बनकर प्रशासन के लिए मुसीबत बनी है। कैलादेवी ट्रस्ट की ओर से पेश याचिका पर एनजीटी की सख्ती से नदी की दशा सुधारने के प्रति अफसर चिंतित हो रहे है। उनके कैलादेवी के दौरे हो रहे हैं। पॉलीथिन के खिलाफ मुहिम की औपचारिकताएं की जा रही है।
शौचालयों और नालियों के नदी में पहुंच रहे गंदे पानी को रोकने की सुध आई है। कारण है कि प्रशासन को कोर्ट में रिपोर्ट पेश करनी है कि नदी को प्रदूषण रहित करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए। काश ! प्रशासन ऐसी सजगता पहले दिखाता तो आज पसीना- पसीना होने की नौबत नहीं आती। कालीसिल से भी बदतर स्थिति करौली में बहने वाली भद्रावती नदी की हो रही है। इस नदी से भी लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी रही हैं। तीन दशक पहले तक निर्मल जल इसमें हिलौरें मारता था। धार्मिक कार्यक्रमों में नदी का जल प्रयोग होता रहा है।
करौली की जीवनदायिनी रही भद्रावती से इलाके के जल स्रोतों का जल स्तर बढ़ा रहता था। यह नदी भी मैली हुई है। नदी में चहुं ओर से गंदा पानी और कचरा पहुंच रहा है। नगरपरिषद ने तो नदी पेटे को कचराघर बना डाला है। शहर का गंदा पानी इसमें जा रहा है। नदी का पेटा कचरे से इतना लबालब हुआ है कि इसमें पानी का ठहराव नहीं हो पाता। ऐसे में यह नदी भी अपनी दुर्दशा पर आंसु बहा रही है तो इसका कारण अफसरों की लापरवाही ही है। वे नदी में प्रवाहित हो रही गंदगी को रोकने के प्रति फिलहाल गंभीर नहीं हैं। कोई भागीरथ बन इस मामले को भी एनजीटी में के समक्ष लेकर जाएगा तो शायद संभव है कालीसिल की तरह भद्रावती की भी प्रशासन को सुध आएगी।

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