क्षेत्र में पत्थरों के अलावा सोपस्टोन, खळी आदि की दो दर्जन से भी अधिक खदानें है। इन खदानों से रोजाना दो दर्जन से भी अधिक टै्रक्टर-ट्रॅाली पत्थरों की निकाली जाती है। उल्लेखनीय है कि कई बार हादसे भी हो जाते है, लेकिन खननकर्ताओं के कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्षेत्र में पहाड़ों से खनन को कई ग्रामीणों ने कमाई का जरिया बना रखा है। कई ग्रामीण दस-बारह का समूह बनाकर पहाड़ों से खनन कर पत्थर एवं मोर्रम भरकर ले जाते है। कमाई के चक्कर में पुरूषों के साथ महिलाएं व युवतियां भी खनन में हाथ बंटाती है। इस संबंध में एक जगह कार्य कर रही महिलाओं ने बताया कि एक ट्राली भरने में दो-तीन घंटे लगते है। इससे उन्हें तीन-चार सौ रुपए मिल जाते है। ग्रामीणों का कहना है कि वनविभाग में कार्यरत अधिकांश कर्मचारी आसपास के गांवों के है, जो खनन कर्ताओं के आगे कुछ नहीं बोलते।
वनप्रसार अधिकारी ब्रजमोहन गुर्जर का कहना है कि कभी-कभार लोग अवैध खनन चोरी-छीपे कर लेते है। वैसे अवैध खनन की शिकायत मिलती नहीं है। यदि कोई अवैध खनन करते पाया जाता है तो कार्रवाई करेंगे।