करौली

शहद की पैदावार ने घोली मिठास, किसानों का आर्थिक स्तर हुआ उन्नत

किसानों में भी बढ़ रही रुचि गुढ़ाचंद्रजी. नादौती तहसील क्षेत्र में कई किसान खेतीबाड़ी के साथ मधुमक्खी पालन कर हर वर्ष लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं। मधुमक्खी पालन इन किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस व्यवसाय ने कई किसानों के जीवन में मिठास घोल दी है। हालांकि क्षेत्र में दूसरे राज्यों के युवा किसान भी हर साल यहां मधुमक्खी पालन करने आते हैं। इस समय मधुपालन का सीजन चल रहा है। ऐसे में बाहर से किसान आए हुए हैं। हरियाणा, पंजाब, हनुम

करौलीNov 29, 2022 / 12:32 pm

Jitendra

गुढ़ाचंद्रजी. आमलीपुरा गांव के समीप खेत में मधुमक्खी पालन के लिए रखे बक्से को दिखाते किसान।

शहद की पैदावार ने घोली मिठास, किसानों का आर्थिक स्तर हुआ उन्नत
मधुमक्खी पालन के लिए पंजाब-हरियाणा से आ रहे किसान, स्थानीय किसानों में भी बढ़ रही रुचि
गुढ़ाचंद्रजी. नादौती तहसील क्षेत्र में कई किसान खेतीबाड़ी के साथ मधुमक्खी पालन कर हर वर्ष लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं। मधुमक्खी पालन इन किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस व्यवसाय ने कई किसानों के जीवन में मिठास घोल दी है। हालांकि क्षेत्र में दूसरे राज्यों के युवा किसान भी हर साल यहां मधुमक्खी पालन करने आते हैं। इस समय मधुपालन का सीजन चल रहा है। ऐसे में बाहर से किसान आए हुए हैं। हरियाणा, पंजाब, हनुमानगढ़ आदि इलाकों से किसान आए हुए हैं। पंजाब राज्य के फिरोजपुर निवासी किसान चरणजीतसिंह, हनुमानगढ़ के रामजीत आदि ने बताया कि राजस्थान में मधुमक्खी पालन का स्कोप अच्छा है। राजस्थान के किसान भी परम्परागत खेती के साथ मधुमक्खी पालन कर आर्थिक स्तर मजबूत बना सकते हैं। स्थानीय तेसगांव के पूरण गुर्जर व खेड़ला के विनोद भी मधुमक्खी पालन कर रहे हैं।
सरसों की पैदावार के समय जमाते डेरा
किसानों के अनुसार सरसों की पैदावार के समय मधुमक्खी पालन सबसे अधिक किया जाता है। क्योंकि सरसों के पीले फूलों से मधुमक्खी शहद बनाती है। राजस्थान में रबी की फसल के दौरान सरसों की बम्पर पैदावार होती है। सरसों की खेती में फूल आने के साथ ही मधुमक्खी पालकों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया है। तेसगांव, खेड़ला, कैमरी आदि गांव के किसान भी मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। राजस्थान में जुलाई से जनवरी तक का मौसम मधुमक्खी पालन के लिए अनुकूल है।
विशेष बॉक्स में तैयार होता है शहद
सहायक कृषि अधिकारी हरिओम मीणा ने बताया कि मधुमक्खी जिन फसलों में पराग क्रिया करती है उन फसलों की गुणवत्ता बढ़ाती है। पराग क्रिया से पैदावार भी बढ़ती है। मधुमक्खी की इस परागण क्रिया से फसल में डेढ़ गुना तक वृद्धि हो जाती है। मधुमक्खी पालन के लिए 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। मौसम अनुकूल होने पर मधुमक्खियां 1 सप्ताह में एक डिब्बे में 7 से 8 किलो शहद जमा करती है। राष्ट्रीय बागवानी योजना के तहत मधुमक्खी पालन पर अनुदान भी दिया जाता है।
देसी तरीकों से भी करते शहद की पहचान
शहद के असली या नकली होने का सटीक पता तो लैब पर जांच के बाद ही पता चलता है, लेकिन कई लोग देसी पद्वति से भी जांच कर शहद की गुणवत्ता का आंकलन करते हैं। मधुमक्खी पालन से जुड़े लोगों ने बताया कि सबसे अच्छा शहद मधुमक्खियों द्वारा सरसों व धनिया की फसल तैयार किया होता है। सरसों का शहद सफेद रंग का होता है। हल्के तापमान में ही शहद तीन से 4 घंटे में जम जाता है। शहद सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। औषधियां तैयार करने में शहद का उपयोग होता है।
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