आजकल अनेक प्रत्याशी चुनावी माहौल को पैसे से बना रहे हैं। प्रत्याशियों के साथ वाहनों का काफिला चलता हैं। उनमें चलने वाले समर्थकों की संख्या तो सीमित होती है, लेकिन किराए के लोग काफी तादाद में होते हैं जो जयकारे और नारे लगाते रहते हैं।
इनका काम झंडी बैनर लेकर चलना और ऊंची आवाज में नारे लगाना ही होता है। इतना ही नहीं जिस स्थान पर कार्यक्रम होना होता है वहां पर व्यवस्थाएं सम्बंधित प्रत्याशी की ओर से पहले ही कर दी जाती है। एक टीम अग्रिम पहुंच जाती है। जो नुक्कड़ सभा का मंच, कुर्सी लगाने, फर्श बिछाने जैसे काम करती है। मालाओं और साफों की व्यवस्था प्रत्याशी के साथ ही रहती है जो आगे- आगे वितरित की जाती है। कुछेक जगहों पर उम्मीदवारों को फलों व मिठाई से भी तौला जा रहा है।
इसके प्रबंध भी प्रत्याशी की टीम द्वारा किए जाते हैं। जिस गांव में भी नेताजी का काफिला पहुंचता है, वहां का माहौल कुछ ही क्षण में उस प्रत्याशी का बन जाता है। कोई अहसास नहीं कर पाता कि ये माहौल प्रत्याशी ने अपने धन से तैयार किया है।
आजकल भाड़े के ऐसे लोगों की रेट 800 से एक हजार तक की चल रही है। साथ में उनको बढिय़ा गाड़ी में बैठने को मिल रहा और खाने-नाश्ते के प्रबंध भी होते हैं। इसलिए ऐसे लोग सहज मिल जाते हैं। बड़े नेताओं की सभा में भी इस प्रकार के भीड़ जुटाने के प्रबंध होते हैं। ऐसे भाड़े के लोगों से होने वाले आयोजनों को देख कर किसी प्रत्याशी के माहौल का आकलन करना मुश्किल हो रहा है। फिर इस माहौल को सोशल मीडिया पर वायरल भी किया जा रहा है।
सब के अपने फेसबुक पेज और व्हाटसप ग्रुप
इस बार के चुनाव में सोशल मीडिया का क्रेज इतना बढ़ गया है कि अधिकांश प्रत्याशियों ने अपने फेसबुक पेज, व्हाटसअप ग्रुप बनाए हुए हैं। सभी ने सोशल मीडिया के प्रचार के लिह्यए कार्मिक लगाए हुए हैं। जो लाइव करते हैं और शेयर भी कराते हैं।
इस बार के चुनाव में सोशल मीडिया का क्रेज इतना बढ़ गया है कि अधिकांश प्रत्याशियों ने अपने फेसबुक पेज, व्हाटसअप ग्रुप बनाए हुए हैं। सभी ने सोशल मीडिया के प्रचार के लिह्यए कार्मिक लगाए हुए हैं। जो लाइव करते हैं और शेयर भी कराते हैं।
ये बात दीगर है कि इन सबकी विश्वसनीयता नहीं होती है, इसके लिए वो अधिकृत मीडिया टीम की ओर तांकते हैं