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करौली

बागों के लिए प्रसिद्ध था मण्डरायल का दुर्ग, राजा अर्जुनपाल ने मक्खन खां को यहां हरा पुुन: शासन स्थापित किया

अतीत के झरोखे से जानिए, इतिहासकार डॉ. धीरेन्द्र सिंह जादौन की कलम से मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के सीमांत प्रदेश स्थित दुर्ग को…

करौलीApr 16, 2018 / 08:22 pm

Vijay ram

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करौली.
यहां मंडरायल का दुर्ग पूर्व मध्यकाल का एक प्रसिद्ध दुर्ग रहा है। यह किला मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के सीमांत प्रदेश पर स्थित है।

चम्बल नदी के किनारे यह एक उन्नत के शिखर भू-भाग पर स्थित है। इसका निर्माण लाल पत्थरों से हुआ है। यह वन प्रदेश का पहाड़ी दुर्ग है। दुर्ग में ऐसा कुछ भी नहीं मिलता जिससे निर्माण तिथि पर प्रकाश डाला जा सके। बयाना के महाराजा विजयपाल के पुत्र मदनपाल ने मंडरायल दुर्ग का निर्माण कराया था।
जागाओं की पोथी में लिखे लेख के अनुसार इस मंडरायल दुर्ग का निर्माण बयाना के राजा विजयपाल की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दूसरे क्षेत्रों में पलायन करके बस गए। बयाना के महाराजा विजयपाल के एक पुत्र मदनपाल मण्डपाल ने मंडरायल को आबाद किया और वहां एक किले का निर्माण सम्बत 1184 के लगभग कराया था जो आज खंडहर स्थित में है। मेडिकोटोपो ग्राफिकल गजेटियर के अनुसार भी इस दुर्ग का निर्माण किसी यदुवंशी जादों राजा ने ही कराया था।
जिससे राजा मण्डपाल की ही सम्भावना की जा सकती है। इसका निर्माण कार्य भी 11वीं सदी के आसपास होने की सम्भवना है। क्षेत्रीय किवदंतियों के अनुसार इस दुर्ग का नामकरण मंडन ऋषि के नाम पर हुआ। जिन्होंने इस पहाड़ी पर कभी तपस्या की ओर बाद में ताल में समाधिस्थ हो गए। वीरविनोद के अनुसार यह किला पूर्व राजपूत कालीन है। किले की ऊंचाई अधिक नहीं है। कुछ सीढिय़ां पार करने के बाद किले का मुख्य भू-भाग आता है। किले में दो तालाब है तथा कुछ देव मंदिर भी है। किला जीर्ण-शीर्ण है।
किले के दो द्वार थे जिनमें सूरजपोल मुख्य द्वार था। यह द्वार इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि इसमें सुबह से शाम तक सूर्य का प्रकाश देखा जा सकता है। इसी दरवाजे की तराई में मंडरायल कस्बा आबाद है। जिसके तीनों और बड़े-बड़े दरवाजों युक्त प्रचीर है। मंडरायल दुर्ग करौली से 40 किमी की दूरी पर दक्षिण पूर्व में है। पूर्व में मंडरायल अपने बागों लिए प्रसिद्ध था। मंडरायल का यह दुर्ग ग्वालियर के पास स्थित होने से मध्यकाल में बड़ा प्रसिद्ध था।
इस किले को ग्वालियर की कुंजी माना जाता था। महाराजा कुंवरपाल के वंशज गोकुलदेव के पुत्र अर्जुनपाल ने 1327 में मंडरायल के मक्खन खां को परास्त कर अपने पूर्वजों के राज्य को फिर से प्राप्त करना प्रारंभ किया। अर्जुनपाल ने मंडरायल के आसपास रहने वाले मीणों तथा पंवार राजपूतों को परास्त कर राज्य का विस्तार किया। 1348 में कल्याणपुरी नामक नगर बसाया तथा कल्याणजी का मंदिर बनवाया। कल्याणपुरी ही बाद में करौली नाम से जानी जाने लगी।

– (इतिहासकार डॉ. धीरेन्द्र सिंह जादौन का Patrika.com के लिए विशेष आलेख)

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