एक समय बुद्ध अपना चीवर पहन व भिक्षापात्र हाथ में लेकर श्रावस्ती में भिक्षाटन के लिए निकले। उस समय अग्निक भारद्वाज के घर पर हुए यज्ञ में अग्नि प्रज्वलित हो रही थी और उसमें आहुति की सामग्री डाली गई थी। बुद्ध घर – घर भिक्षाटन करते हुए अग्निक भारद्वाज के घर के निकट पहुंचने ही वाले थे कि अग्निक ने उन्हें आता हुआ देख लिया। वह क्रोध से बोला, ‘ वहीं रूको मुण्डक ! वहीं। अरे ओ वृषल्लक ( नीच ), वहीं ठहरो। ‘
यह सुन कर बुद्ध ने अग्निक से पूछा, ‘ हे ब्राह्मण ! क्या तुम यह जानते हो कि वो कौन सी बातें हैं जो किसी को वृषल या नीच बनाती हैं?’ अग्निक ने उत्तर दिया, ‘ गौतम ! मैं नीच बनाने वाली बातों को नहीं जानता। अच्छा हो, यदि तुम ही मुझे ऐसा बता दो, उपदेश दो, जिससे मैं वृषल या नीच बनाने वाली बातों को जान सकूं।’
बुद्ध ने कहा, अच्छा ब्राह्मण ! तो सुनो और भली प्रकार मनन करके मन में उन्हें धारण करो। बुद्ध ने अपना उपदेश आरंभ करते हुए कहा,.. जो व्यक्ति क्रोध करने वाला, बंधे वैर वाला, बहुत ईर्ष्यालु, मिथ्या – दृष्टि वाला व मायावी होता है, उसे नीच मानो। जो व्यक्ति योनिज या अण्डज ( योनी तथा अण्डों से पैदा होने वाले ) किसी भी प्राणी की हिंसा करता है, जिसे प्राणियों के प्रति दया नहीं है और जो गांवों व कस्बों पर आक्रमण करके उन्हें बर्बाद करता है व अत्याचारी के रूप में प्रसिद्ध है, उसे नीच जानो।
आगे बुद्ध ने कहा, जो व्यक्ति किसी से ऋण लेता है और लौटाते समय लड़ाई – झगड़ा करता है या भाग जाता है। जो व्यक्ति मार्ग में चलते हुए किसी मनुष्य को मार – पीट कर उस वस्तु को लूट लेता है या किसी का धन लेने के लिए न्यायाधीश के सामने झूठी गवाही देता है, उसे नीच समझो।
बुद्ध कहते हैं, कोई व्यक्ति बलपूर्वक या प्रेम से भाई – बंधुओं या मित्रों की स्त्रियों के साथ वार्तालाप में दिखाई देता है, उसे नीच मानो। जो कोई व्यक्ति समर्थ व सम्पन्न होते हुए भी अपने वृद्ध माता – पिता की सेवा व भरण – पोषण नहीं करता और जो माता – पिता, भाई – बहन, सास -ससुर के साथ कटु – वचन बोलता है, क्रोध करता है व उन्हें मारता – पीटता है, उसे नीच जानो।
पुन : बुद्ध कहते हैं, जो व्यक्ति भलाई की बात पूछने पर बुराई की बात बताता है व गलत रास्ता दिखाता है और बात को हेरा – फेरी से घुमा – फिरा कर करता है। जो पाप – कर्म कर के उसे छिपाता है, उसे भी नीच समझो।
जो व्यक्ति दूसरों के घर जाकर स्वादिष्ट भोजन करता है और उसके आने पर उसका आदर – सत्कार नहीं करता, जो श्रेष्ठ व चरित्रवान व्यक्ति को धोखा देता है और भोजन के समय आए हुए व्यक्ति से क्रोध से बोलता है और उसे खाने के लिए कुछ नहीं देता, उसे नीच जानो।
पुन : बुद्ध कहते हैं, ‘ जो व्यक्ति मोह से ग्रस्त है, किसी चीज की प्राप्ति के लिए झूठ बोलता है, अपनी प्रशंसा व दूसरों की निंदा करता है, जो अभिमान से गिर गया है और जो क्रोधी, कंजूस, बुरी इच्छा वाला, कृपण, शठ, निर्लज्ज व असंकोची है और जो बुद्ध , उनसे प्रवज्जित व गृहस्थ उपासकों को गाली देता है, उसे नीच जानो।
सीख हे अग्निक ! जाति से न कोई नीच होता है और न ही ब्राह्मण। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों से ही नीच या श्रेष्ठ होता है। यह सुनकर ब्राह्मण अग्निक, बुद्ध से अत्यधिक प्रभावित हुआ और वह बुद्ध का शिष्य बन गया।
प्रस्तुतिः डॉ. चन्द्रपाल, पूर्व आईएएस
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