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कटनी

लॉकडाउन में गांव-घर जा रहे मजदूरों की दर्दनाक कहानी, उन्हीं की जुबानी…

-विशाखापट्टनम से चले हैं, जाना है करौदी कला, कटनी

कटनीMay 11, 2020 / 04:34 pm

Ajay Chaturvedi

गांव घर को लौटते श्रमिक प्रतीकात्मक फोटो

गांव घर को लौटते श्रमिक प्रतीकात्मक फोटो

कटनी. कोरोना का कहर और लॉकडाउन में श्रमिको, मजदूरों की पीड़ा असहनीय हो गई है। तमाम सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। आलम ये है कि सरकार के स्तर से ट्रेन चलाने के बावजूद ऐसे मजदूरों की तादाद कहीं ज्यादा है जो पैदल ही अपने गांव-घर की ओर निकल पड़े हैं। पैदल चलते-चलते पांव में छाले पड़ गए हैं, न पीने को पर्याप्त पानी मिल रहा न भोजन ही नसीब हो रहा है। बस एक जुनून है उसी के बिना पर चले जा रहे हैं।
अब कटनी के इन 21 मजदूरों की व्यथा सुन कर किसका कलेजा न फट जाए। पांच महीना पहले ये परिवार के बेहतर भरण-पोषण के लिए विशाखापट्टनम गए थे। वहां एक प्लेट निर्माता कंपनी में काम करने लगे। कुछ ही दिन गुजरा था कि कोरोना महामारी की खबर लगी। संक्रमण तेज होने लगा तो पूरे देश में लॉकडाउन हो गया। अब काम-धंधा बंद। पास में जो था उससे कुछ दिन गुजारा चला। फिर न घर में राशन न जेब में पैसा। इसी बीच जहां काम करते थे उस मालिक ने वादा किया कि वो भोजन भी देगा और पैसे भी। बस और क्या चाहिए था, मजदूर रुक गए। लेकिन कुछ ही दिनों बाद मालिक वादे से पलट गया। अब इनके पास घरवापसी के अलावा कोई चारा न था। सो चल दिए पैदल।
अब इन मजदूरों का कहना है कि तीन दिन से पैदल चल रहे हैं, इस दौरान चार दफा भोजन मिला है, वह भी ठीक से नहीं खा पाए। पास में जो पीने का पानी है उसे भी थोड़ा-थोड़ा करके ही पीते हैं कि कहीं खत्म न हो जाए। भूख और प्यास के मारे चला नहीं जा रहा। पर मंजिल तो तय करनी ही है। सो चले जा रहे हैं।
ये कटनी के करौंदीकला के मजदूर जिनकी संख्या 21 है मिल मालिक के वादे से मुकरने के बाद इन्होंने स्थानीय प्रशासन से गुहार लगाई। लेकिन वहां से कोई मदद नहीं मिली। ऐसे में 7 मई की रात 11 बजे के करीब ये 21 मजदूर पैदल ही निकल पड़े घर की राह पर। तकरीबन 971 किलोमीटर की दूरी तय कर घर पहुंचने की तमन्ना तो इनके मन में लेकिन कभी-कभी हिम्मत टूटने लगती है।
इन मजदूरों में शामिल राकेश, योगेश धर्मेंद्र आदि ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि चलते-चलते 15 लोगों का मोबाइल रास्ते में ही डिस्चार्ज हो गया। अब रास्ते में मोबाइल चार्ज करने का कोई इंतजाम तो था नहीं। सो वे सभी मोबाइल शांत हैं। कुछ अन्य लोगों के मोबाइल में थोड़ी-थोड़ी बैटरी बची है। उसी से परिजनों को अपनी कुशलता की सूचना दे रहे हैं। वो कहते हैं कि अब एक बार घर पहुंच जाएं, दोबार कहीं बाहर जाने की सोचेंगे भी नहीं। बताया कि 24 घंटे में हाइवे किनारे यात्री प्रतीक्षालय में महज दो से तीन घंटे ही सोते हैं फिर चल देते हैं।
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