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कटनी

इस शहर में जिला प्रशासन और नगर निगम की खींचतान में गुमनाम हुई 62 वर्षों की ऐतिहासिक परंपरा, लोगों में निराशा

जिला प्रशासन और नगर निगम की खींचतान के बीच 62 साल पुरानी ऐतिहासिक परंपरा गुमनाम होती जा रहा है। 13 नवंबर से कटायेघाट में मेले का आयोजन होना था, लेकिन धारा 144 लागू होने के कारण कलेक्टर शशिभूषण सिंह ने इसे रद्द कर दिया था।

कटनीNov 19, 2019 / 12:16 pm

balmeek pandey

Katayeghat katni Mela was not organized

Katayeghat katni Mela was not organized

कटनी. जिला प्रशासन और नगर निगम की खींचतान के बीच 62 साल पुरानी ऐतिहासिक परंपरा गुमनाम होती जा रहा है। 13 नवंबर से कटायेघाट में मेले का आयोजन होना था, लेकिन धारा 144 लागू होने के कारण कलेक्टर शशिभूषण सिंह ने इसे रद्द कर दिया था। कलेक्टर, महापौर, निगम अध्यक्ष सहित अन्य नेताओं की बैठक में 18 नवंबर से मेले आयोजन को लेकर सहमति बनी थी, लेकिन 18 को भी मेले का आयोजन शुरू नहीं हुआ। अब मेले को लेकर इस साल फिर संशय की स्थिति बनी हुई है। यहां पर झूला, खाद्य सामग्री के स्टॉल, टेंट आदि लग गया था, लेकिन सोमवार को पुलिस कर्मियों ने डंडे के बल पर अलग करा दिया है। बता दें कि कटायेघाट का मेला ऐतिहासिक रहा है, इसके बाद भी नगर निगम ने ध्यान नहीं दिया। जानकारी अनुसार मेले का शुरुआत तत्कालीन विधानसभा सदस्य रामदास अग्रवाल उर्फ लल्लू भैया द्वारा सन 1957 से की गई थी। 1967 तक मुड़वारा क्षेत्र से विधायक रहते हुए शानदार मेला लगा। इसके पश्चात जनपद सभा कटनी के द्वारा मेला भरवाया जाता रहा। ग्रामीण क्षेत्र में अमकुही आता था। लगातार मेला लगता रहा। चंद्रदर्शन गौर 1998 में विधायक बने और उनके द्वारा मोर्चा संभाला गया। 1981 से फिर मेले की शुरुआत हुई और श्याम शर्मा को अध्यक्ष बनाया गया। श्याम शर्मा द्वारा लगातार तीन साल तक मेले का आयोजन कराया गया, इंदिरा गांधी की हत्या पर 1984 में नहीं भरवाया गया। बता दें कि लगभग ढाई दशक से भव्य मेला लगने लगा था, 2014, 2017, 2018 में आचार संहिता के कारण नहीं हो पाया, लेकिन अब फिर परंपरा इच्छाशक्ति की कमी से नहीं लग पाया। मेला न लगने से लोगों में निराशा का भाव है।

 

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हाथरस की नौटंकी रही ऐतिहासिक
जब नगर निगम बनी तो काफी समय तक मेले को लेकर रुचि नहीं ली गई। मेला ठेके में दे दिया जाता रहा। कार्तिक पूर्णिमा पर लोग स्नान पूजन के लिए जाते रहे, इसमें मेला चला और परंपरा का निर्वहन हुआ। 1982 का मेला ऐतिहासिक रहा। इसमें सरकार के 17 स्टॉल लगे थे। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, एसीसी, नगर निगम, वन मंत्रालय, समाज विकास मंत्रालय, पंचायत, सहकारिता, रेल मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय के स्टॉल 13 दिन तक प्रोजेक्टर के माध्यम से जानकारी दी गई। हाथरस की नौटंकी आकर्षण का केंद्र होती थी। बस्ती के लोग इसका लुत्फ उठाते थे। लगभग 24 घंटे का मेले का आयोजन होता था। नदी में वोटिंग चलती थी जो अब गुमनाम हो गई।

इनका कहना है
धारा 144 के चलते कलेक्टर ने रोक लगा दी थी, 18 से कर मेला लगाने चर्चा हुई थी। इसकी तैयारी भी हो गई थी। मेला आयोजन के लिए सोमवार को कलेक्टर से फिर मुलाकात करनी थी, लेकिन वे जबलपुर बैठक में गए हैं। जल्द ही आयोजन के लिए डेट तय कर कटायेघाट में मेले का आयोजन किया जाएगा।
शशांक श्रीवास्तव, महापौर।

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